Samay Ka shor

जब ध्वनि
असीम होकर सम्मुख हो
तो कान बंद कर लेना
बुद्धिमानी नहीं
जो ध्वनि का सत्य है
वह असीम ही है।

चलोगे तो पग ध्वनि भी निकलेगी
अपनी पगध्वनि
काल की निस्तब्धता में सुनो
समय का शोर
तुम्हारी पगध्वनि का क्रूर आलोचक होगा।

अतिरिक्त कविता लिंक- कल आज और कल 

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Last Update: September 20, 2025