मेरे एक मित्र यूँ तो चिट्ठाकारी नहीं करते, पर चिट्ठा-चर्चा और अन्य चिट्ठे पढ़ते जरूर हैं। यद्यपि इन्हें पढ़ने का उनका शौक मेरे ही कम्प्यूटर से पूरा हो पाता है, क्योंकि मेरे कस्बे में दूसरी जगहों पर इण्टरनेट केवल व्यावसायिक नजरिये से ही उपयोग में आता है, वह कुछ लिखने पढ़ने के काम नहीं आता। मेरे यह मित्र मेरे चिट्ठे को पढ़कर अक्सर कुछ उलाहने भी दिया करते हैं प्रविष्टियों के सम्बंध में, यथा इन प्रविष्टियों में अत्यन्त शुद्ध हिन्दी का प्रयोग इन्हें नहीं रुचता ; चूँकि वह राजनीति शास्त्र के अध्येता (अब अध्यापक) रहे हैं इसलिये उन्हें यह बात भी खटकती है कि मेरी प्रविष्टियाँ राजनीति व सामसामयिक मुद्दों पर नहीं होतीं। हेमन्त को मैं कोई जवाब नहीं देता और चुपचाप उन्हें चिट्ठे पढ़ने देता हूँ। यह भी बताता चलूँ कि हेमन्त कुल पाँच चिट्ठे ही पढ़ते आये हैं अब तलक (मेरे बार-बार अन्य चिट्ठों की तरफ आकर्षित करने के बावजूद)- चिट्ठा-चर्चा, क्वचिदन्यतोअपि, शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग, अनवरत और फुरसतिया (जानबूझ कर मैंने एक नाम छोड़ दिया- स्वप्नलोक अन्यथा यह संख्या छः है)।

हेमन्त का इतना जिक्र इसलिये क्योंकि उन्होंने मुझे आज की प्रविष्टि पोस्ट करने के लिये उकसाया। एक पुस्तक लगभग चार साल पहले एक पुस्तकालय से लेकर पढ़ने के बाद मैंने उसे हेमन्त को उसकी कुछ महत्वपूर्ण बातें नोट कर लेने के इरादे से दी थी। पुस्तक तो पुस्तकालय में जमा कर दी गयी (यद्यपि जब एक बार फिर मैंने उसे पढ़ना चाहा तो वह उपलब्ध नहीं हुई), परन्तु उसकी कुछ महत्वपूर्ण सामग्री हेमन्त के पास लिख ली गयी थी । आज चार वर्षों बाद हेमन्त ने वे कागज मुझें उपलब्ध कराये। मुझे महत्वपूर्ण लगे- यहाँ पोस्ट करना मैंने ठीक समझा (जबकि यह एक निश्चित रुचि वाले लोगों को ही रुचेंगे)।

पुस्तक का नाम था ’आत्म रामायण’ जिसे लिखा था किन्हीं ’कवि हरि सिंह’ जी ने। पुस्तक में रामकथा में प्रयुक्त प्रतीकों की विशद चर्चा की गयी थी। संक्षिप्ततः उन सभी प्रतीकों को मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ।

रावण के दस सिर और उन्हें काटने वाले बाण

क्र०सं०
रावण के सिर
काटने वाले बाण
1
परदोष प्रेक्षण
अन्तर्मुखता
2
हठ
गुरु भक्ति
3
निरादर
भय
4
भेद
अभेद वृत्ति
5
कुरोग
निःसंशय
6
ढीठता
कोमलता
7
महाशोक
आत्मानन्द
8
भय
निज मिलाप
9
मान
निःमान
10
देहाभिमान
ब्रह्मोस्मि

Photo: Wikipedia

Last Update: September 17, 2022

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