माँ केन्द्रित दूसरी कविता पोस्ट कर रहा हूँ। इस कविता का शीर्षक और इसके कवि का नाम मुझे नहीं मालूम, यदि आप जानते हों तो कृपया यहाँ टिप्पणी में वह नाम जरूर लिखें।

पिता
मैं बहुत थोड़ा हूँ तुम्हारा
और बहुत सारा हूँ उसका
जिसका नाम तुम्हारे दफ़्तर के दोस्त नहीं जानते
नहीं जानती सरकारी फाइलें
नहीं जानती मेरी टीचर
नहीं जानते मेरे दोस्त भी…..

मैं
बहुत सारा हूँ उसका
जिसका नाम नहीं लिखा जायेगा
उसके ही गेट पर टँगने वाली तख़्ती पर
जिसका नहीं लिखा जायेगा कोई इतिहास……

मैं
बहुत सारा हूँ उसका
जिसने मुझे बूँद से पहाड़ तक ढोया
सहन की असह्य पीड़ा
और
मृत्यु के लिये रही तैयार
केवल और केवल मेरी पैदाईश के लिये…..

–‘अनाम


Categorized in:

Poetry,

Last Update: September 22, 2025