आओ चलो, दीप रखते हैं कविता जीवन के हर उस कोने को प्रकाशित करने का आह्वान है जहां हमारा घर, हमारा प्रेम, और हमारी स्मृतियां बसती हैं। छत की मुंडेर से लेकर खेतों की मेड़ों तक, गीतों से लेकर हृदय की गहराइयों तक, हर जगह दीप जलाने का एक गहरा अर्थ है – प्रेम, विश्वास और जीवन का सहज स्वीकार।


आओ चलो, दीप रखते हैं
छत-मुंडेर पर, 
आले-खिड़की, देहरी पर,
सूने आंगन के कोने कोने
जहां हमारा गेह, हमारा नेह।

आओ चलो, दीप रखते हैं
राह सलोनी, नुक्कड़ नाले पर,
रसवंती नदी, फुदकती धार, सेतु पर
जहां निखरता, 
सहज सिरजता जीवन धारे देह।

आओ चलो, दीप रखते हैं
खेतों-मेड़ों पर,
पोखर, बाड़ी, ताल-तलइया, पनघट पर
बंसवट की ओर,
बाग में छांव तले
जिनसे अनूप यह धरा धाम, यह देश।

आओ चलो, दीप रखते हैं
गीतों पर,
अपनी सुधियों पर,
प्रिय-प्रतीति की अनगिन श्वांसों, निःश्वासों पर
हृदय वीथिका, अंतर्मन के सहज कपाटों पर
जहां राग, विश्वास, सहज स्वीकार सजे चहुंओर।