Contemplation, Ramyantar

Diary-डायरी के कुछ पृष्ठ

Diary

Diary-डायरी के पन्ने ब्लॉग पर Diary-डायरी लिखने की आदत बचपन से है। नियमित-अनियमित डायरी लिखी जाती रही। यद्यपि इनमें बहुत कुछ व्यक्तिगत है, परन्तु प्रारम्भिक वर्षों की डायरियों के कुछ पन्ने मैंने सहजने के लिए ब्लॉग पर लिख देना श्रेयस्कर…

Poetry, Ramyantar

कविता : आशा

सुहृद! मत देखो- मेरी शिथिल मंद गति, खारा पानी आँखों का मेरे, देखो- अन्तर प्रवहित उद्दाम सिन्धु की धार और हिय-गह्वर का मधु प्यार। मीत! मत उलझो- यह जो उर का पत्र पीत इसमें ही विलसित नव वसंत अभिलषित और…

Capsule Poetry

बादल तुम आना (कविता)

विलस रहा भर व्योमसोममन तड़प रहायह देख चांदनीविरह अश्रु छुप जाँय, छुपानाबादल तुम आना ।। 1 ।। झुलस रहा तृण-पातऔर कुम्हलाया-सामृदु गातधरा दग्ध,संतप्त हृदय की तृषा बुझानाबादल तुम आना।। 2 ।।

भोजपुरी, लोक साहित्य, शैलबाला शतक

शैलबाला शतक: भोजपुरी स्तुति काव्य (तेरह)

भाव कै भूख न भीख कै भाषा सनेह क जानी न मीन न मेखा कवनें घरी रचलै बरम्हा मोके हाँथे न माथे में नेह की रेखाकाँप उठि जम कै टँगरी उघरी हमरी करनी कै जो लेखा एकहु बेर हमै करुनामयि…

भोजपुरी, लोक साहित्य, शैलबाला शतक

शैलबाला शतक: भोजपुरी काव्य रचना (बारह)

करुणामयी जगत जननी के चरणों में प्रणत निवेदन हैं शैलबाला शतक के यह छन्द! शैलबाला शतक के प्रारंभिक चौबीस छंद कवित्त शैली में हैं। इन चौबीस कवित्तों में प्रारम्भिक आठ कवित्त (शैलबाला शतक: एक एवं शैलबाला शतक: दो) काली के…

भोजपुरी, लोक साहित्य, शैलबाला शतक

शैलबाला शतक: भोजपुरी स्तुति काव्य (ग्यारह)

शैलबाला शतक स्तुति नयनों के नीर से लिखी हुई पाती है। इसकी भाव भूमिका अनमिल है, अनगढ़ है, अप्रत्याशित है। करुणामयी जगत जननी के चरणों में प्रणत निवेदन हैं शैलबाला शतक के यह छन्द! शैलबाला-शतक के प्रारंभिक चौबीस छंद कवित्त…

Capsule Poetry, Poetry, Ramyantar

कविता : इंतज़ार उसका था

[एक.] सलीका आ भी जाता सिसक उठता झाड़ कर धूल पन्नों की पढ़ता कुछ शब्द सुभाषित ढूंढ़ता झंकारता उर-तार राग सुवास गाता रहस-वन मन विचरता। मैं स्वयं पर रीझ तो जाता पर इंतज़ार उसका था। [दो.] साँवली-सी डायरी में एक…

Ramyantar, Songs and Ghazals

ग़ज़ल – चाँदनी या मुख़्तसर सी धूप लाना, भूलना मत

नज़र में भरकर नज़र कुछ सिमट जाना, भूलना मत। देखना होकर मगन फिर चौंक जाना, भूलना मत। मौज़ खोकर ज़िन्दगी ग़र आ किनारों में फँसे नाव अपनी खींचकर मझधार लाना, भूलना मत। न पाया ढूढ़कर भी दर्द दिल ने बेखबर…