मन का चैन है जिसके लिये खूब तैयारी करता हूँ। कुछ पाने, न पाने की बेचैनी, जीवन की शान्ति और अन्तर्भूत आनन्द को पाने की छटपटाहट में कई बार मन उद्विग्न हो जाया करता है। अपना आन्तर जीवन तनाव और बेचैनी का जीवन महसूस होता है, जो पीड़ित है, असुरक्षित है।
आसपास देखता हूं- सब कुछ आगे बढ़ रहा है- द्रुतगति से। मनुष्य को महत्व देने वाली अनेक उपलब्धियां मनुष्य ने प्राप्त कर ली है। सब कुछ व्याख्या, तर्क, बुद्धि के आश्रय में खो गया है- मैं भी अपनी इसी एकतान बुद्धिगामी अवस्था में मदमाता फिर रहा हूं। बहुत कुछ प्राप्ति की इच्छा, या कुछ अपने हिसाब से घटता जाय इसकी अपेक्षा- सब कुछ ने मन का चैन हर लिया है।
बार-बार यही लगता है कि मनुष्य के दुख और उसके निरानन्द के अनेक कारणों में से सम्भवतः एक कारण है उसकी यह इच्छा कि वस्तुओं को उसके मन के अनुसार ही घटित होना चाहिये, और जब ऐसा नहीं होता तो पीड़ा अपना सर उठा लेती है। ऐसे कठिनतम क्षणों में कई बार दार्शनिक ’एपिक्टेटस’(Epictetus) के यह शब्द प्रबोध देते जान पड़े हैं, समझाते हुए मिले हैं-
उन चीजों की ओर मत देखो, जिन्हें तुम अपनी चाह के अनुसार घटित होने देना चाहते हो, बल्कि चाहो कि वस्तुएं वैसे ही घटित हों, जैसी वे हैं, और तब तुम जीवन के प्रशान्त प्रवाह का अनुभव करोगे।
Epictetus: Greek Stoic Philosopher
बात तो सही की है
बात तो अच्छी कही है आपने। कहते हैं कि-
ख्वाहिशों को खूबसूरत शक्ल देने के लिए।
ख्वाहिशों की कैद से आजाद होना चाहिए।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
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बहुत कुछ मनुष्य के वश में नहीं हो पाता -वह निमित्त मात्र ही रह जाता है ! गीता में कृष्ण अर्जुन को कहते हैं -निमित्तमात्रं भव सव्यसाची ( बाएँ हाथ से भी धनुष संचालन की क्षमता के कारण अर्जुन का एक नाम यह भी था ) मतलब की अर्जुन तुम बाएँ हाथ से धनुष संचालन बहले ही कर सकते हो तथापि तुम कर्ता नहीं हो म,आतर निमित्त मात्र ही हो ! संतोष रखो ! भारतीय सनातन जीवन पद्धति में संतोष रखने को ही एक बड़ी उपलब्धि मानी गयी है -मगर यह आत्मानुशासन से ही संभव है !
सो संतोष रखें और किसी अपनी तुलना न करें -क्योंकि आप अतुलनीय जो हैं !
धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय !
मन एव मनुष्याणां कारणं बंध मोक्षयोः। एपिक्टेटस ने बिल्कुल सही बात कही है।
आपके विचारों से मिलते-जुलते विचार कुछ दिन पुर्व ही मेरे ब्लोग पर “बोलो ठीक है ना” नामक रचना में रखे थे। हमारी इच्छाएं कभी मरती ही नहीं। मन को वश मे रखना ही जरूरी है ।
उन चीजों की ओर मत देखो, जिन्हें तुम अपनी चाह के अनुसार घटित होने देना चाहते हो, बल्कि चाहो कि वस्तुएं वैसे ही घटित हों, जैसी वे हैं, और तब तुम जीवन के प्रशान्त प्रवाह का अनुभव करोगे ।”
” सच कहा है इन पंक्तियों ने ..”
Regards
शायद यही दोहराव जिंदगी है. आज तक तो समझ आया नही.
रामराम.
“उन चीजों की ओर मत देखो, जिन्हें तुम अपनी चाह के अनुसार घटित होने देना चाहते हो, बल्कि चाहो कि वस्तुएं वैसे ही घटित हों, जैसी वे हैं, और तब तुम जीवन के प्रशान्त प्रवाह का अनुभव करोगे ।”
दार्शनिक ’एपिक्टेटस’ के इन महान विचारों को पाठकों तक पहुंचाने का शुक्रिया..
जब कम से शान्ति मिले तो क्यो भागए ज्यादा के पीछे…
बहुत ही सुंदर लिखा.
धन्यवाद
वस्तुओ में घटित होने का गुण होता है अच्छी या बुरी, इच्छित या अनिच्छित मन की अवस्था का परिणाम है