यूँ तो सीधी सीधी निंदक वंदना नहीं की, पर ‘निंदक नियरे राखिये’ की लुकाठी लेकर कबीर ने…
हिन्दी ब्लॉग लेखन को साहित्य की स्वीकृत सीमाओं में बांधने की अनेक चेष्टाएँ हो रही हैं। अबूझे-से…
मैं लिखने बैठता हूँ, यही सोचकर की मैं एक परम्परा का वाहक होकर लिख रहा हूँ। वह…
आज की लेखनी (या उसे चिट्ठाकारी कहिये) का गुण है कि वह पठनीय हो कि जटिलताओं के…
मैं यह सोचता हूँ बार-बार की क्यों मैं किसी जीवन-दर्शन की बैसाखी लेकर रोज घटते जाते अपने…
मैं एक ब्लॉग टिप्पणी हूँ। अब टिप्पणी ही हूँ तो कितना कहूं। उतना ही न जितना प्रासंगिक…