हिन्दी ब्लॉग लेखन को साहित्य की स्वीकृत सीमाओं में बांधने की अनेक चेष्टाएँ हो रही हैं। अबूझे-से प्रश्न हैं, अबूझे-से उत्तर। ब्लॉग की अवधारणा साहित्या की अवधारणा से मेल नहीं खाती। सब कुछ अवांछित, असुंदर, अनगढ़ साहित्य की संपत्ति कैसे हो सकता है? प्रश्न मारक है। कुछ विचार कर लें।
साहित्यकार क्यों रचता है साहित्य?
साहित्यकार क्यों रचता है साहित्य? व्यक्ति की चेतना के रूपायन और व्यष्टि के उन्नयन के लिए। साथ ही साहित्य संस्कृति के समतुल्य है क्योंकि वह मनुष्य की समष्टिगत चेतना का प्रतीक है। फ़िर साहित्य और जीवन मिल कर संस्कृति बन जाते हैं। साहित्य हमारी संस्कृति व सभ्यता का व्यापार (activity) बन जाता है। साहित्य लाखों जीवित मनुष्यों द्वारा जीवन को निरखकर अपनी आकांक्षा का निर्माण करता है और इस द्वैत से ऊपर उठ जाता है कि साहित्य में कुछ भी अनुकूल या विपरीत है। वह केवल श्रद्धा भाव जानता है, उसमें घृणा नहीं। यही कारण है कि साहित्य वर्त्तमान की तद्रूपता को स्वीकार नहीं करता। वह केवल कल्पना में अपनी सार्थकता समझता है। बात अलग है कि वह कल्पना भविष्य की सुंदर कल्पना हो और उसके लिए उसमें वर्तमान के जीवनानुभव शामिल कर लिए गए हों ।
आज का जनमानस यही सोचता हुआ क्रियाशील है कि यदि साहित्य हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारे जीवन का व्यापार (activity) है तो यह सीधे सीधे इनकी व्याख्या क्यों नहीं करता? या इन्हें प्रभावित क्यों नहीं करता? साहित्य की मर्यादा के लिए असुविधा खड़ी हो जाती है। क्योंकि हमारे जीवन को देखने का ढंग बदला है, साहित्य सम्पूर्ण से एकांगी हो गया है। यह जीवन उलझा-सा जीवन है- सामासिक। इसे आधुनिक कहिये- क्योंकि यह जीवन विध्वंसक है, विस्फोटक है।
जीवन के प्रति हमारी श्रद्धा खंडित हो गयी है। तो फ़िर इन आधुनिक कठिनाइयों में साहित्य के सर्वमान्य सिद्धांतों व उसकी गूढ़ सीमाओं को लागू कैसे किया जा सकता है? मतलब, साहित्य का मतलब बदल गया है। किसी भी जिज्ञासु को साहित्य के उपयोग या मूल्य के सम्बन्ध में कोई सामान्यीकृत कथन कह कर मनाया नहीं जा सकता आज। इसका कारण है नए और पुराने साहित्य के बीच (नए साहित्य के विभिन्न रूपों की बीच भी) प्रकृति , उद्देश्य व मूल्यों में अन्तर होना।
हिन्दी ब्लॉग लेखन – समय की अभिव्यक्ति का वाहक
हिन्दी ब्लॉग लेखन साहित्य की सीमाओं से परे सर्जित साहित्य है क्योंकि यह समय की अभिव्यक्ति को व्यक्त करता है। बाद में ऐसा होगा कि यही समय की अभिव्यक्ति पलट कर ‘साहित्य’ में ‘साहित्य’ का स्थान निर्धारित करेगी। फ़िर माध्यम का कोई बवेला नहीं खडा करेगा साहित्य के लिए। फ़िर यह तय हो जायेगा कि सर्जक के लिए माध्यम की कोई विवशता नहीं। वह अनथक मेहनत, साधना से माध्यमों का भेद ख़त्म कर सकता है।
चूंकि इस जटिल, निर्वैयक्तिक और यांत्रिक जीवन में हमें अभिव्यक्ति का एक ऐसा रूप चाहिए जो वर्तमान जीवन की शब्दगत अभिव्यक्ति हो, जो इसी यांत्रिक एकरसता से हमारे भावजगत का स्वातंत्र्य चुरा कर सबके सम्मुख व्यक्त करे; तो हम क्यों न चिट्ठाकारी के इस मनोहारी रूप का आदर करें, जहाँ मनुष्य के भावजगत का स्वातंत्र्य सबसे अधिक प्रकट हुआ है। जीवन की क्षण-संवेदनाओं को व्यक्त करने के लिए साहित्य की गूढ़-गंभीर शास्त्रीय सीमाओं की क्या आवश्यकता? इसीलिये तो हर नया चिट्ठाकार इसी विनीत उद्घोषणा के साथ साहित्य की इस नयी रूपाकृति का अंग बनता है-
“मेरा आग्रह भी नहीं रहा मैं चलूँ उसी पर
सदा जिसे पथ कहा गया, जो
इतने पैरों द्वारा रौंदा जाता रहा कि उस पर
कोई छाप नहीं पहचानी जा सकती थी। ” ( ‘अज्ञेय’ )
का जन्म ही हुआ है अपने विचारों को इस Internet के जरिये जन जन तक अपने भावों को पहुचने के लिए और साहित्य से बढ़कर कौन सा ऐसा माध्यम है जिससे आप अपने आपको व्यक्त कर सकें?
तो प्रिंट मीडिया से इतर ब्लॉग लेखन एक तरह की क्रांति ही है जिससे हर कोई समर्थ हो गया है, अपनी प्रतिभा दिखने में, ख़ुद को बताने में.
भाई बनारस में हिन्दी इंटरनेट का एक आंदोलन चलना चाहिए. आप खुद केवल ब्लाग लिखें इससे अच्छा है कि कुछ लोगों को और तैयार करिए कि वे ब्लाग लिखने के अलावा हिन्दी में इंटरनेट व्यवहार करें. साईबर कैफे आदि में भी यह प्रचार होना चाहिए कि हिन्दी में ईमेल भेजा जा सकता है. मैं एक बार बनारस गया था तो कम से कम एक साईबर कैफे में यह सुविधा शुरू करवा आया था.
आपके विचारों से पूर्ण सहमति !
पूर्ण सहमति…
क्रियेटिव राईटिंग का एक उत्कृष्ट उदाहरण -मगर यह भी देखें कि साहित्य का एक अर्थ जुड़ने का भी है -जो साहित्य इतना निर्वैयक्तिक, आत्मरति और अमूर्तता लिए हो जाय कि आम समझ /जन समझ से दूर होता जाय वह किस तरह का कैसा साहित्य है -यह भी बहस का बिन्दु होना चाहिए . ब्लॉग लेखन को जो भी साहित्य से इतर मानते हैं वे परले दर्जे के शुचितावादी और प्रकारांतर से साहित्य का ही अहित करने वाले हैं ! भारत की विडम्बना यह रही है कि यहाँ साहित्य को एक संकीर्ण अर्थ में लिए जाने की सुदीर्घ परम्परा है -कई लोग तो इसे हिन्दी विभागों में ही कैद किए पड़े हैं जहाँ वह मुक्ति की छटपटाहट लिए हुए है .ब्लॉग निसंदेह साहित्य है -अब यह श्रेष्ठ है या कम श्रेष्ठ है इस पर विचार हो सकता है -पर एक सिरे से ही इसे साहित्य न मानने का फतवा जारी कर देना सचमुच स्तब्ध करने वाला विचार है !
aap ke vicharo se sahmat hun!
‘ब्लॉग’ यदि साहित्यिक लेखन कर रहा है तो वह निश्चित रूप से साहित्य है. जहाँ तक श्रेष्ठता का प्रश्न है,वह तो प्रिंट लेखन में भी है . कुछ ही कृतियाँ उत्कृष्टता की श्रेणी में आती हैं.
सब क्षेत्रों में उत्कृष्टता के द्वीप हैं और उसके साथ फैली अनन्त चिरकुटई। हिन्दी साहित्य में यह स्पष्ट दीखती है। कुछ टॉवरिंग आदर्श हैं और ढेरों बौने।
हमें ऐसा लग रहा है कि आप साहित्य पर हिन्दी के अभिजात्य वर्ग का एकाधिकार बनाए रखना चाहते हैं. हम केवल इतना भर कहना चाहेंगे कि जब भाषा के साथ व्यभिचार होगा तो आपका साहित्य भी धरा का धरा रह जाएगा.
भाई हमे तो आप की बात सही ढंग से समझ ही नही आई कि आप कहना क्या चाहते है, हम ना तो कोई लेखक है, ना पत्रकार, ओर ना ही लेखन, बस जो मन मै आया यहा लिख दिया, जिस मै गलतियां भी दब कर होती है, ओर भाषा भी बिलकुल सीधी साधी, अगर हम जेसो से कोई ऎतराज हो तो जरुर लिखे.
धन्यवाद