सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 4-6)
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी भाव रूपांतर त्वदन्यः पाणिभ्यामभयवरदो दैवतगणःत्वमेका नैवासि प्रकटित वराभीत्यभिनया,भयात् त्रातुं दातुं फलमपि च वांछासमधिकंशरण्ये लोकानां तव हि चरणावेव निपुणौ ॥4॥ प्रकट नहीं करती हो देवी, दिया हुआ वरदान अभयअन्य देवता पर हाथों से देने का करते अभिनय…