Hibiscus (Photo : soul-nectar) |
आंसू खूब बहें, बहते जांय
हंसी नहीं आती,
पर हंसी खूब आये
तो आंखें भर-भर जाती हैं
आंसू आ जाते हैं आंखों में।
कौन-सा संकेत है यह प्रकृति का?
वस्तुतः कितना विलक्षण है
हंसी का यह गुण
जो तत्वतः
मात्रा की अपेक्षा करता है
तो जिस परिस्थिति के किसी गुण पर
हमें आती हंसी है
यदि मात्रा में वृद्धि हो जाय उसके
हम रोने लगेंगे।
हाय, कैसा अनोखा
यह हंसी का व्यवहार है!
सुन्दर!
इसी बहाने हिमांशु मैं आपको तंत्रिका विज्ञानियों की एक खोज से परिचित करा दूं -दरअसल हसने और रोने के मष्तिष्क के अंदरूनी हिस्से जुड़े हुए हैं और एक की अतिशय गतिविधि दूसरे को भी उद्दीपित कर देती है -इसलिए ही रोते रोते अचानक हंस पड़ने और हंसते हंसते अचानक ही रोने लग जाने के विचित्र वयवहार दीखते हैं ! दोनों में बाल सा बारीक विभेद है बस !
वस्तुतः कितना विलक्षण है
हंसी का यह गुण
जो तत्वतः
मात्रा की अपेक्षा करता है
waah bahut sahi aur sunder baat.
@ अरविन्द जी, धन्यवाद इस तथ्य से परिचित कराने के लिए ।
@ अनूप शुक्ल जी व महक जी, धन्यवाद ।
बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
रामराम.
बारीक विश्लेषण किया है आपने हंसी और हंसी के बीच आने वाले आसुओं का
सुन्दर रचना है
अद्भुत विचार है मित्र ….
दोस्त अती हर चीज की बुरी ही होती है ।
बहुत अनोखे अद्भुत विचार………….पढ़ कर एक शेर याद आगया………….पता नहीं किसका है…….
बहुत रोये हैं उस एक आंसू की खातिर
जो आता है खुशी की इन्तेहा पर।
बहुत ही सुंदर, लेकिन उस हंसी मै भी बेईंतेहा दर्द छिपा होता है…
धन्यवाद