Rose Bud (Photo credit: soul-nectar) |
यदि देख सका
किसी वस्तु को उसकी पूर्णता में
तो रचूंगा जो कुछ
वह पूर्णतः अनावरित करेगा
स्वयं को
सौन्दर्य है क्या
सिवाय एक केन्द्रीभूत सत्य के?
जैसे सूरज या फिर
जैसे आत्मा
जो अपनी अभिव्यक्ति,
अपने प्रसार में पूर्ण नहीं
क्योंकि किरणें
सूर्य की होकर भी
सूर्य नहीं हैं,
क्योंकि अन्तश्चेतन
आत्म का होकर भी
आत्मा नही है
तो, यदि देख न सका
किसी वस्तु को उसकी पूर्णता में
तो उसका अंशभूत सौन्दर्य
निरखूंगा, क्योंकि
यह अंश भी
पूर्णता की प्रकृति को
धारण करेगा।
सुन्दर भाव हैं। सचमुच जीवन तो पूर्णता की तलाश ही तो है।
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
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तो, यदि देख न सका
किसी वस्तु को उसकी पूर्णता में
तो उसका अंशभूत सौन्दर्य
निरखूंगा,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति हिमांशु ..मानो मेरे मन की बात कह दी हो आपने ! समग्रता को पा लेने को उत्कंठित मन को यदि उसके अंशतः की प्राप्यता की अनुभूति भी हो जाय तो जीवन समझो धन्य है -वैसे भी हमारा चिरन्तन दर्शन तो यही कहता है ना -यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे -यानि जो मायिक्रोकाज्म में है वही तो मैक्रोकास्म में भी है !
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति.
रामराम.
आप की कविता में दार्शनिक पुट है.
किसी भी अंश का पूर्णता की प्रकृति को पाना कहाँ आसान है!
सुन्दर रचना ,गहन अभिव्यक्ति .
यदि देख सका
किसी वस्तु को उसकी पूर्णता में
तो रचूंगा जो कुछ
वह पूर्णतः अनावरित करेगा
स्वयं को
——–
सही है मित्र! जब तक ऑब्जर्वेशन गहन न हो, तब तक सृजन उत्कृष्ट हो ही नहीं सकता।
तो, यदि देख न सका
किसी वस्तु को उसकी पूर्णता में
तो उसका अंशभूत सौन्दर्य
निरखूंगा, क्योंकि
यह अंश भी
पूर्णता की प्रकृति को
धारण करेगा ।
पूर्णता को पाना, तो उस कुदरत को, उस भगवान को पाने समान हुया, बहुत ही सुंदर ओर गहरे भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद