१)
कविता
उमड़ आयी अन्तर्मन में
जैसे उतर आता है
मां के स्तनों में दूध।
२)
कविता का छन्द
सध गया वैसे ही
जैसे स्काउट की ताली में
मन का उत्साह।
३)
कविता का शब्द
सज गया बहुविधि
जैसे बनने को माला
सजते हैं फूल।
४)
कविता का अर्थ
शब्दों के अन्तराल में निखर गया
जैसे रिश्ते
दोनों छोर के तनाव में।
५)
कविता का राग
बरस गया जीवन में
जैसे बरसती है ईश-कृपा
अकिंचन संसार में।
बेहतरीन रचनाऐं..सुन्दर अभिव्यक्ति!!
सुन्दर!
काव्य सृजन की पूरी प्रक्रिया बता दी है आप ने। लेकिन सब से महत्वपूर्ण…
कविता
उमड़ आयी अन्तर्मन में
जैसे उतर आता है
मां के स्तनों में दूध ।
हिमांशु की कलम से निःसृत कविता को ही व्याख्यायित करती एक और उत्कृष्ट कविता !
बहुत खुब..
सुंदर्तम अभिव्यक्ति. आनन्द आया पढकर.
रामराम.
निसंदेह ये बहुत ही अनुपम रचनाए है.. दिल खुश हो गया वाकई..
वाह !! वाह !!
himanshu ji paanchon rachnayen gagar men sagar.
कविता का राग
बरस गया जीवन में
जैसे बरसती है ईश-कृपा
अकिंचन संसार में ।, bahut sunder , badhai
कविता
उमड़ आयी अन्तर्मन में
जैसे उतर आता है
मां के स्तनों में दूध ।
—-
ओह, जैसे रामकृष्ण परमहंस तत्वज्ञान पाने की बात कह रहे हों! सुन्दर।
बहुत ही सुंदर, कवि भी तो अपनी कविता को अपने बच्चे की तरह से प्यार करता है, सुंदर सुंदर शव्दो से उसे सजाता है.
धन्यवाद इस सुंदर भाव के लिये
हमेशा की तरह…..इस बार भी मैं लाज़वाब हो गया….रचना की बाबत कुछ भी कहने की ताब मुझमें कतई नहीं….!!
कविता
उमड़ आयी अन्तर्मन में
जैसे उतर आता है
मां के स्तनों में दूध ।
………..अब तक के जीवन में पढ़ी गयी सर्वश्रेष्ट उपमा है ये….!!