Monthly Archives

October 2008

Poetry, Ramyantar

भिखारी: नख-शिख वर्णन

कुछ दिनों पहले एक भिक्षुक ने दरवाजे पर आवाज दी। निराला का कवि मन स्मृत हो उठा। वैसी करुणा का उद्वेग तो हुआ, पर व्यवस्था के प्रति आक्रोश ने शब्द का चयन बदल दिया। क्षमा के साथ। कुछ कहेंगे इस…

Poetry, Ramyantar

कागजों में चित्र

बहुत पहले एक आशु कविता प्रतियोगिता में इस कविता ने दूसरी जगह पाई थी। प्रतियोगी अधिक नहीं थे, प्रतियोगिता भी स्थानीय थी, पर पुरस्कार का संतोष इस कविता के साथ जुड़ा रहा है। कविता ज्यों कि त्यों लिख रहा हूँ-…

Poetry, Ramyantar

रो उठे तुम!

रोने का एक दृश्य आंखों में भर गया । एक लडकी थी,रो रही थी । किसी ने उससे उसका हाथ मांग लिया था। प्यार जो करता था वह। लडकी रो उठी। अजीब-सा वैपरीत्य था। यह छटपटाहट थी या असहायता-पता नहीं।…

Poetry, Ramyantar

एक आदमी, एक गुरु- हाँ, हाँ, ना,ना

मैंने तुम्हें औरतों से बतियाते कभीं नहीं देखा और न ही -मर्दों से ऐसा सुना- किसी औरत ने बड़ी अदब से तुम्हारा नाम लिया अक्सर उन औरतों से जिनका पैर तुम छूते रहे हो (अब तुम्हें क्यों इसकी जरूरत पड़ीं,नहीं…

Poetry, Ramyantar

अनुभव: कुछ सन्दर्भ

एक बाग़ है अनुभव का उसमें खिले हैं कुछ फूल ये फूल बरसों का निदाघ झेल कर बड़े हुए ये फूल समय के शेष नाम हैं । अनुभव का अपना एक पूरा आकाश है उस आकाश में उगा है एक…

Poetic Adaptation, Poetry, Ramyantar

समय पखेरू है भागते समय को पकड़ो

अमेरिकी दार्शनिक कवि इमरसन (Ralph Waldo Emerson) का एक प्रसंग पढ़ रहा था । समय की अर्थवत्ता को ध्वनित करता यह प्रसंग बहुत दूर तक प्रासंगिक लगा। कविता का संस्कार है। अपने छोटे से भतीजे को ग्राह्य बनाने हेतु उस…

Poetry, Ramyantar

क्यों?

क्यों? खो गए हो विकल्प में, चर्चित स्वल्प में विस्मृत सुमधुर अतीत क्यों लेकर चलते हो बेगाना गीत स्वर्ग की ईच्छा क्यों छोड़ दी तुमने आख़िर अनसुलझी, अस्तित्वविहीन अनगिनत कामनाओं की डोर क्यों जोड़ दी तुमने आख़िर क्यों बहक जाते…

Ramyantar

सच्चा की सच्ची पुकार: प्रभु आप जगो

अभी सुबह नहीं हुई है, पर जाग गया हूँ। एक अनोखी पुकार मन को वर्षों से आकर्षित करती रहती है- उसी को गुनगुना रहा हूँ- जगा रहा हूँ ईश्वर को या फिर अपने आप को, पता नहीं। इस पुकार को…