रोने का एक दृश्य आंखों में भर गया । एक लडकी थी,रो रही थी । किसी ने उससे उसका हाथ मांग लिया था। प्यार जो करता था वह। लडकी रो उठी। अजीब-सा वैपरीत्य था। यह छटपटाहट थी या असहायता-पता नहीं। एक कविता निकल आयी- बहाने की तरह।
क्या है जीवन में
निश्छल, निष्पाप,निर्द्वंद, निर्लिप्त,निर्बोध
एक अम्लान हँसी के सिवा
पर मैंने सुना -‘रो उठे तुम’।
वही पुराना राग जो
गाती चली आयी है नारी सदियों से।
एक पागलपन -अपने आप पर आरोपित कर लेना
क्या बुद्धिमानी है?
और रोये भी तो कब ? निर्णय के क्षण पर —
अब यदि कह ही उठा था कोई अपना अभीप्सित
तो सोचते तो कुछ क्षण,
क्षण भर, और
सुना देते अपना निर्णय।
याचक मांगना जानता है…छीनना नहीं ।
न देते कुछ
विस्मृत कर देते उसे , पर
मैंने सुना- ‘तुम रो उठे’।
सोचो ! सूरज निकला तो रोशनी होगी ही
यदि फूल खिला तो सुगंध उठेगी ही
और इसी तरह
प्रेम जब उपजेगा, तो अभिव्यक्त होना चाहेगा …
पर इसी अभिव्यक्ति पर ही मैंने सुना –
‘तुम सचमुच रो उठे’।
रोना हो तो रोओ , बेशक
पर कुछ खोओ मत।
सच तो यही है कि जब हृदय में
झंकृत हो उठे आनंद,
गूंजने लगे मौन और
सारी प्रकृति रास रूप में थिरकने लगे –
और इसे व्यक्त करने के लिए
न हो शब्द, अक्षर, उद्धरण …….
तो झर उठते हैं आँसू
और व्यक्त करते हैं आनंद संवाद।
पर मैंने सुना- ‘तुम व्यर्थ ही रो उठे’।
खो दिया आनंद, लौटा दी हंसी किसी अपरिचित को,
छीन लिया अपना ही परिचय स्वयं से और
स्तब्ध हो उठे तुम
मैंने सुना- ‘रो उठे तुम’।
Photo Source: Flickr (Angie)
बहुत ही सुन्दर रचना है।
खो दिया आनंद, लौटा दी हंसी किसी अपरिचित को,
छीन लिया अपना ही परिचय स्वयं से और
स्तब्ध हो उठे तुम
मैंने सुना- ‘रो उठे तुम’।
सोचो ! सूरज निकला तो रोशनी होगी ही
यदि फूल खिला तो सुगंध उठेगी ही
और इसी तरह
प्रेम जब उपजेगा, तो अभिव्यक्त होना चाहेगा …
sach hee kaha. badhai ho. nirantar likhen.likhte rahen.
ladkee ka rona koi vaiparitya nahin khada karta himanshuji. ladkee pyar, manuhaar aur avasarvadi ikraar ka matlab bakhoobi samjhatee hai.
ek achchhi rachna ke liye badhaii.
रोने को लेकर इतना सचेत भाव !