जॉर्ज हर्बर्ट George Herbert की कविता Virtue उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है। यह कविता उनकी काव्य संग्रह “The Temple” में शामिल है, जो 1633 में उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई थी। Virtue में हर्बर्ट ने नैतिकता और पवित्रता की स्थायित्व को प्रकृति के क्षणिक सौंदर्य के संदर्भ में प्रस्तुत किया है। यह कविता प्राकृतिक सौंदर्य और नैतिक सद्गुण के बीच अंतर को दर्शाती है, जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य क्षणिक होता है और सद्गुण स्थायी।


Virtue by George Herbert – Original Text

Metaphysical Poet George Herbert
George Herbert

SWEET day, so cool, so calm, so bright!
The bridal of the earth and sky–
The dew shall weep thy fall to-night;
For thou must die.

Sweet rose, whose hue angry and brave
Bids the rash gazer wipe his eye,
Thy root is ever in its grave,
And thou must die.

Sweet spring, full of sweet days and roses,
A box where sweets compacted lie,
My music shows ye have your closes,
And all must die.

Only a sweet and virtuous soul,
Like season’d timber, never gives;
But though the whole world turn to coal,
Then chiefly lives.

Hindi Translation of the Poem

अहह मधुरअति सौम्य शांत ज्योतिर्मय वासर!
एक तान कर रहे रूपमय अवनी अम्बर।
किंतु जोहती पतन तुम्हारा रजनी क्षण-क्षण
मर जाओगे, विलख उठेंगे ढुलकअश्रु-कण॥

राग रंग-मय मधुर गुलाब सुमन चटकीले
चकाचौंध कर देते दर्शक-लोचन गीले।
किंतु सतत भूतल में तेरी जड़ें गड़ी हैं
सर पर तुम्हें निगल जाने को मृत्यु खड़ी है॥

सरस गुलाब-सुमन दिन थाती ले रसवंती
अहह मधुरतम मनोहारिणी ऋतु-वासन्ती।
री! रसाल, मेरे गीतों ने यह जाना है
ऋतु-मधु-कोष-पीठ ! तुमको भी मर जाना है॥

मात्र गुणमयी मधुर आत्मा का ही सरगम
होता कभीं विनष्ट न सदाबहार काष्ठ सम।
जलकर राख अखिल जग जिस दिन हो जाता है
उस दिन भी गुणमय जीवन जीता-गाता है॥


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जॉर्ज हर्बर्ट (1593-1633) एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि, पादरी और वक्ता थे। उनका जन्म 3 अप्रैल, 1593 को मॉन्टगोमरी, वेल्स में हुआ था। हर्बर्ट को मुख्य रूप से उनके धार्मिक और भक्ति कविताओं के लिए जाना जाता है।

हर्बर्ट की शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ उन्होंने लैटिन और ग्रीक में महारत हासिल की और विश्वविद्यालय में प्राध्यापक भी बने। उन्होंने 1629 में पादरी बनने का निर्णय लिया और 1630 में इंग्लैंड के बेमर्टन में एक छोटे चर्च के रेक्टर बने।

हर्बर्ट की कविताएँ सरल भाषा में गहरी धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करती हैं। उनकी रचनाओं में ‘द टेम्पल’ (1633) सबसे प्रसिद्ध है, जो उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई थी। इस संग्रह में 160 से अधिक कविताएँ शामिल हैं, जिनमें से कई भक्ति, प्रेम, और आध्यात्मिक संघर्षों पर आधारित हैं।

जॉर्ज हर्बर्ट का निधन 1 मार्च, 1633 को हुआ

जॉर्ज हर्बर्ट की एक कविता ‘The Collar’ पर एक आलेख रम्यांतर पर प्रकाशित है।