Monthly Archives

November 2008

Love Poems, Poetic Adaptation, Poetry, Ramyantar

तुम शायद झुंझला जाते हो!

प्रेम पत्रों का प्रेमपूर्ण काव्यानुवाद: तीन A close capture of hand written love letters. तुम शायद झुंझला जाते हो! कर ही क्या सकती हूँ छोड़ इसे हे प्राणाधिक बतलाओ ना जाने भी दो कृपा करो अब रोष मुझे दिखलाओ ना…

Poetry, Ramyantar, Songs and Ghazals

उत्तर अपना औरों से पूछा

प्रश्न स्वयं का उत्तर अपना औरों से पूछा, अपने मधु का स्वाद लुटेरे भौरों से पूछा। जाना जहाँ जहाँ से आया याद नहीं वह घर, माटी का ही रहा घरौंदा रचता जीवन भर- भोज-रसास्वादन कूकर के कौरों से पूछा। मूर्च्छा…

Article | आलेख

आतंकवाद और साम्प्रदायिकता

भारत की साझी विरासत को लेकर बड़ा चिंतनशील हो चला हूँ। भारत की यह साझी विरासत सम्प्रदायवाद और आतंकवाद के साझे में चली गयी है। कभीं सम्प्रदायवाद बहकता है और किसी न किसी धर्म,सम्प्रदाय के कन्धों पर कट्टरता व धर्मांतरण…

Capsule Poetry, Poetry, Ramyantar

मत पूछना वही प्रश्न

अगर कभी ऐसा हो कि कहीं मिल जाओ तुम तो पूछने मत लगना वही अबूझे, अव्यक्त प्रश्न अपने नेत्रों से क्योंकि मेरी चुप्पी फ़िर तोड़ देगी, व्यथित कर देगी तुम्हें और तब मैं भी खंड-खंड हो जाऊंगा अपने उत्तरों को…

Article on Authors

हरिवंश राय बच्चन: संदेह यहाँ जन-जन के

मधुशाला व बच्चन पर फतवे की आंच अभी धीमी नहीं पड़ी होगी। हरिवंश राय बच्चन होते तो ऐसे फतवों के लिए कह डालते- “मैं देख चुका जा मस्जिद में झुक-झुक मोमिन पढ़ते नमाज,पर अपनी इस मधुशाला में पीता दीवानों का…

Poetry, Ramyantar

उड़ चली है आत्मा परमात्मा के पास

सच में ‘मैना’ ही नाम था उसका। मेरे पास अब केवल यादें शेष रह गयी हैं उसकी। छः बरस पहले अचानक ही लिख गयी थी यह कविता। आज मैना उड़ चली पिता के घर से पिया के घर गीलीं हो…

Article | आलेख, Hindi Blogging

हिन्दी ब्लॉग लेखन : विरुद्धों का सामंजस्य

हिन्दी ब्लॉग लेखन के कई अंतर्विरोधों में एक है सोद्देश्य, अर्थयुक्त एवं सार्वजनीन बन जाने की योग्यता रखने वाली प्रविष्टियों, और आत्ममुग्ध, किंचित निरुद्देश्य, छद्म प्रशंसा अपेक्षिता प्रविष्टियों का सह-अस्तित्व। सोद्देश्य, गहरी अर्थवत्ता के साथ लिखने वाला ब्लॉगर अपनी समस्त…

Love Poems, Poetry, Ramyantar

मुझमें जो आनंद विरल है

मुझमें जो आनंद विरल है वह तुमसे ही निःसृत था और तुम्हीं में जाकर खोया । घूमा करता हूँ हर पल, जीवन में प्रेम लिए निश्छल कुछ रीता है, कुछ बीता है, झूठा है यह संसार सकल यह चिंतन जो…

Poetry, Ramyantar

नेह-स्वांग

उसने नेह-स्वांग रच कर अपने सामीप्य का निमंत्रण दिया नेह सामीप्य के क्षणों में झूठा न रह सका अपने खोल से बाहर आकर नेह ने अपनी कलई खोली दिखा वही गुनगुना-सा निष्कवच, निःस्वांग विदेह नेह । क्षुधा की तृप्ति नेह…