प्रेम पत्रों का प्रेमपूर्ण काव्यानुवाद: छ:
इस छलना में पड़ी रहूँ
यदि तेरा कहना एक छलावा।
तेरे शब्द मूर्त हों नाचें
मैं उस थिरकन में खो जाऊँ
तेरी कविता की थपकी से
मेरे प्रियतम मैं सो जाऊँ
अधर हिलें मैं प्राण वार दूँ
यदि उनका हिलना एक छलावा।
प्रिय तेरे इस भाव-जलधि में
मैं डूबी, बस डूबी जाऊँ
तेरी रसना के बन्धन से
मैं असहज हो बंधती जाऊँ
इन आंखों पर जग न्यौछावर
यदि इनका खुलना एक छलावा।
सारी चाह हुई है विस्मृत
केवल एक अभिप्सित तू है
प्रेम-उदधि मेरे प्राणेश्वर
मेरा हृदय-नृपति तो तू है
प्रतिक्षण मिलन-गीत ही गाऊँ
यदि तेरा मिलना एक छलावा।
प्रतिक्षण मिलन-गीत ही गाऊं
यदि तेरा मिलना एक छलावा.
–क्या बात है-बेहतरीन प्रवाह, गहरे भाव, सुन्दर शिल्प. पूरी की पूरी तारीफ योग्य. बधाई.
तेरा मिलना एक छलावा -जीवन का यही यथार्थ है हिमांशु !
बहुत स्पर्श करती है दिल को
—मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
bahut acchi kavita….bilkul dil ko chooti hai…
बहुत सुंदर भाव , सुंदर कविता.
धन्यवाद
वाह ! बहुत ही सुंदर भाव और सुंदर अभिव्यक्ति.
तेरे शब्द मूर्त हों नाचें
मैं उस थिरकन में खो जाऊं
तेरी कविता की थपकी से
मेरे प्रियतम मैं सो जाऊं
अधर हिलें मैं प्राण वार दूं
यदि उनका हिलना एक छलावा.
अति सुन्दर
सारी चाह हुई है विस्मृत
केवल एक अभिप्सित तू है
प्रेम-उदधि मेरे प्राणेश्वर
मेरा हृदय-नृपति तो तू है
प्रतिक्षण मिलन-गीत ही गाऊं
यदि तेरा मिलना एक छलावा.
यह छलावे ही छलते रहते हैं फ़िर ता उम्र दिल को बहलाना पढता है ,,बहुत सुंदर लगे इस रचना के भाव
bahut sundar
aap mere blog ke follower bane hai,iske liye aapka dhanyawaad,aapka sneh aur sahyog isi tarah milta rahe.isi asha me hoon.
तेरे शब्द मूर्त हों नाचें
मैं उस थिरकन में खो जाऊं
तेरी कविता की थपकी से
मेरे प्रियतम मैं सो जाऊं
अधर हिलें मैं प्राण वार दूं
यदि उनका हिलना एक छलावा
-बहुत ही प्यारी सी अनुभूतियों को कविता का रूप दिया है–बहुत सुंदर!