पूर्व और पश्चिम की संधि पर खड़े
युगपुरुष !
तुम सदैव भविष्योन्मुख हो,
मनुष्यत्व की सार्थकता के प्रतीक पुरुष हो,
तुम घोषणा हो
मनुष्य के भीतर छिपे देवत्व के
और तुम राष्ट्र की
भाव-प्रसारिणी प्रवृत्तियों का विस्तरण हो ।
अहिंसा के चितेरे बापू !
है क्या तुम्हारी अहिंसा –
जीवन का समादृत-स्वीकार ही न !
जीवनानुभूति का विस्तार ही न !
समादर-भाव की प्रतिष्ठा ही न मुक्त करती है
जीवन के अवरुद्ध-स्रोत को ।
गीता की धर्म-संस्थापना और है क्या
सिवाय जीवन के प्रति समादर की प्रतिष्ठा के !
निर्विघ्न सुंदरता की सत्य-मूर्ति !
तुम सजग हो ’परिवर्तन ’ के प्रति ।
परिवर्तन का मतलब –
तल से नयी सभ्यता में दिखता नया मनुष्य ।
नयी सभ्यता : लोभ-मोह निःशेष मनस्थिति
नयी सभ्यता : प्रेमोत्सुक उर, सजल भाव चिति
नयी सभ्यता : प्रकृति प्रेम, निश्छलता औ’ करुणा का सुन्दर योग
नयी सभ्यता : सहज-सचेत-सजग अनुभव का मणिकांचन संयोग ।
हे सार्वत्रिक, हे सर्वमान्य, हे सर्वांतर-स्थित !
नमन् अनिर्वच !
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कवि प्रदीप का लिखा यह गीत मुझे सदैव प्रिय है –
देश के दो लाल…एक सत्य का सिपाही…दूसरा ईमानदारी का पुतला…लेकिन अगर आज गांधी जी होते तो देश की हालत देखकर बस यही कहते…हे राम…दूसरी ओर जय जवान, जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी भी आज होते तो उन्हें अपना नारा इस रूप मे नज़र आता…सौ मे से 95 बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान…
सुंदर काव्य!
असहमति और बात है लेकिन गान्धी और शास्त्री जी की महानता में कोई शक नहीं। दोनों पूज्य हैं।…
उनके चरित्र का शतांश भी हर व्यक्ति में आ जाय तो धरा सँवर जाय।
नमन।
बहुत बढ़िया पोस्ट प्रस्तुति
बापू जी एवं शास्त्रीजी को शत शत नमन
हिमांशु भाई नमस्कार !
सुन्दर पोस्ट आपके द्वारा
यह पोस्ट काव्य भी अनन्य और गीत भी कमाल !
अहिंसा के चितेरे उस विलक्षण व्यक्तित्व तथा सादगी की प्रतिमूर्ति श्री लालबहादुर शास्त्री को सादर नमन …
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए आप बहुत आभार …
पहली बार आपके ब्लॉग आया हूँ और यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता मिली कि युवा वर्ग गाँधी को पहचानता है, जानता है, उनके विचारों की समीक्षा करता है और उन्हें आत्मसात करने में प्रयासरत है.
आपका लेखन प्रभावशाली है, इसे निरंतर रगड़ते-मांझते रहें, साहित्य के भविष्य की काफी सम्भावनाएं मुझे आप में नजर आ रही हैं. कविता बहुत-बहुत अच्छी है और प्रदीप के गीत ने आपकी पसंद भी बता दी. शुभकामनाएं.
गिरिजेश जी की बात में दम है !
बहुत सुंदर, शास्त्री जी को शत शत नमन.
धन्यवाद
वाह रे गांधी !
ऐसा मारा ! ऐसा मारा !
समय की शिला पर अपना हथौड़ा
गढ़ गयी ऐसी मूरत विचारों की
जिसे पूजा जायगा
जनम जनम
गुजरी हैं और गुजरेंगी
सदियां …
रहेगें आप याद !
कविता के लिये आभार हिमांशु भाई !
बापू की स्मृति ही मन को सुख देती है।
रघुपति राघव राजा राम!
good templet. thanks.
vikas.