कौतूहल एक धुआँ है
उपजता है तुम्हारी दृष्टि से,
मैं उसमें अपनी आँखे मुचमुचाता
प्रति क्षण प्रवृत्त होता हूँ
आगत-अनागत के रहस लोक में
समय की अनिश्चित पदावली
मेरी चेतना का राग-रंग हेर डालती है
जो निःशेष है वह ध्वनि का सत्य है ,
वह सत्य जो निर्विकल्प है,
गूढ़ है, पर सहज ही अभिव्यक्त है ।
कौतुहल एक धुआँ है….बस इतना ही पूरा है बात समझने को. वाह!!
आगत अनागत के रहस्य लोक में निःशेष ध्वनि का सत्य गूढ़ है मगर सहज ही अभिव्यक्त है …
क्या कहूँ … निःशब्द ..या …स्तब्ध …!!
उपजता है तुम्हारी दृष्टि से,
मैं उसमें अपनी आँखे मुचमुचाता
निराला को आँखों का कवि कहा गया है। आप ने उनकी याद दिला दी।
दृगों में सीता के राममय नयन
गूढ़ है, पर सहज ही अभिव्यक्त है ।
ye baat sabse sundar lagi poori kavita main…
..kaita ka saar !!
वह सत्य जो निर्विकल्प है,
गूढ़ है, पर सहज ही अभिव्यक्त है ।
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति
व्यवहारिक शब्दों रहसलोक और हेर का प्रयोग बहुत सुंदर है।
बहुत सुन्दर गहन आभिव्यक्ति है आभार्
बहुत सहज अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
रामराम.
सच है कौतुहल एक धुँआ है !
bilkul sach hai yah ek dhuaa hai ……..
सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
निःशेष और शेष के बीच की ध्वनि को सत्य असत्य से जोड़ना उसे संकुचित कर देना है ….!
इसे विराट अर्थों वाला ही रहनें दें ।
जबरदस्त उपस्थिति ।
आभार ।
sundar…..
पता नहीं मित्र; कौतूहल धुआं भी हो सकता है और ठोस सत्य भी। यह भी सम्भव है कि बिगबैंग के बाद जो पहला तत्व था – वह कौतूहल ही रहा हो!
अति सुंदर.
धन्यवाद
हेर शब्द बड़े दिनों बाद दिखा. शब्दों के झुंड में कहीं हेरा सा गया था 🙂
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति । आभार ।