हर शख्स अपने साथ मैं खुशहाल कर सकूँ
मेरी समझ नहीं कि ये कमाल कर सकूँ।
फैली हैं अब समाज में अनगिन बुराइयाँ
है लालसा कि बद को मैं बेहाल कर सकूँ।
फेकूँ निकाल हिय के अन्धकार द्वेष को
कटुता के जी का आज मैं जंजाल कर सकूँ।
है प्रार्थना कि नाथ वृहद शक्ति दो हमें
चेहरा बुराइयों का मैं विकराल कर सकूँ।
बहुत खूब भगवान आप को शक्ति देसुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई
फैली हैं अब समाज में अनगिन बुराइयाँ
है लालसा कि बद को मैं बेहाल कर सकूँ।
यही प्रार्थना है की या हो सके …सुंदर लिखा आपने
nice poem again
Waah ! Pavitra sundar bhaav……ishwar awashy sune……
हर शख्स अपने साथ मैं खुशहाल कर सकूं
मेरी समझ नहीं कि ये कमाल कर सकूं …………
आप अपने साथ हर शख्स को इतनी खूबसूरत कविताओं से खुश करने का कमाल तो कर ही लेते हैं।
ईश्वर आपको ऐसे अनगिनत कमाल करने की सामर्थ्य दे।
सदभावना !
काश आप की बात भगवान सुन ले, बहुत सुंदर कविता कही आप ने . धन्यवाद
हमारे लायक सेवा हो तो बताना जी !
क्या बात है ! शैली कुछ बदली हुयी है !
अच्छा लग रहा है !
है प्रार्थना कि नाथ वृहद शक्ति दो हमें
चेहरा बुराइयों का मैं विकराल कर सकूँ ।
himanshu ji sunder rachna ke liye badhai, chehra buraiyon ka main “vikral” kar sakun ki jagah “badhaal” ho to kaisa hai.
वाह! वह शक्ति हमें दो दया निधे … कलुष जो अन्दर है और बाहर भी, सब दूर हो सके!
बहुत सुंदर कामना और प्रार्थना है .