आजकल चुनावों का महापर्व ठाठें मार रहा है। इस महापर्व के संवाद-राग में मैने वाक् वैदग्ध्य के प्रकार ढूंढे। माफी मुझे पहले ही मिल जानी चाहिये यदि यह सब कुछ केवल बुद्धि का अभ्यास लगे। बात यह भी थी कि कुछ लिख नहीं पा रहा था, सो कलम की चलाई भी इसी बहाने हो गयी।
वाक् वैदग्ध्य (Wit) हास्य का एक बौद्धिक स्रोत है। इसमें केवल बुद्धि का व्यायाम नहीं, थोड़ी रसमयता भी होती है। वैदग्ध्य नाना रूपों में सम्मुख होता है। कुछ रूप प्रस्तुत हैं।
१) संदर्भान्तरण:
एक नेता जी बार-बार चुनाव जीत जाते थे, पर क्षेत्र के विकास का पहिया ठहरा ही रहता । इस चुनाव में भी वे वोट मांगने पहुंचे :
मतदाता: आप फिर आ गये वोट मांगने ?
(तात्पर्य, इस बार हम पहचान गये हैं आप को, वोट नहीं देंगे)
नेता जी: जी! मैं तो आपका पुराना ग्राहक हूं। खयाल रखियेगा।
(तात्पर्य, मेरे बार-बार आने से आपकी सदाशयता उचित है )
२) विरुद्धमति से उत्पन्न व्यंग:
कांग्रेस और भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता राहुल गांधी और वरुण गांधी की तुलना करते हुए:
कांग्रेसी कार्यकर्ता: कहां राहुल गांधी और कहां वरुण गांधी!
भाजपा कार्यकर्ता: जी हां, कहां राहुल गांधी और कहां वरुण गांधी!
(यहां मात्र आवृत्ति से व्यंग की स्थापना हो गयी है । एक-से अर्थ में वाक्य का प्रयोग है, बस पुरुष स्थानापन्न हो गये हैं। )
३) प्रभावाभास:
प्रभावकेन्द्र एक पद से हटाकर दूसरे पर प्रतिष्ठित किया जाय।
नरेन्द्र मोदी: सुना है, तुम हिन्दुत्व के सबसे बड़े पैरोकार बनने चले हो!
वरुण गांधी: बेअदबी माफ, क्या मैं उम्मीद करूं कि मेरी शोहरत हुजूर मुझसे छीन न लेंगे।
(मोदी अपना प्रभाव ’सबसे बड़े पैरोकार’ पर केन्द्रित रखते हैं। लक्ष्य ’हिन्दुत्व की पैरोकारी’ को लेकर तिरस्कार का भाव है। वरुण विनम्र विनोद कर बैठते हैं। नम्रता से व्यंग का पुट भी मिल जाता है।)
४) वैपरीत्य-अभेद:
विपरीत बात कही जाय पर ध्वनि आवृत्ति की ही आये।
दो पार्टियों के दो नेता जिन्हें चुनाव का टिकट नहीं मिल सका :
पहला: आप को टिकट नही मिला न!
दूसरा: जी, और आप को तो मिल गया!
(बात ऐसी ही है, जैसे शब्द को उलट दें फिर भी भेद न आये, जैसे ’चम्मच’।)
५) आधार-आधेय विपर्यय:
मतदाता: पिछले १५ वर्षों से आप हर चुनाव में हमसे राम-राज्य का वायदा करते हैं, फिर झांकने भी नहीं आते।
नेता: सज्जनों! मैं उन लोगों में नहीं जो आज कुछ तो कल कुछ और ही कहते हैं।
(यहां मतदाता सापेक्षिक सत्य की बात करता है, नेता निरपेक्ष सत्य की।)
६) मितव्यय:
बहुत बड़ी बात की संभावना में बात का छोटा सिद्ध होना।
एक प्रत्याशी चुनावी भाषण में:
प्रत्याशी: यदि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका तो अपने पद से इस्तीफा दे दूंगा।
श्रोता: अच्छा हो कि चुनाव ही मत लड़ें।
७) आकांक्षापहरण:
यहां आकांक्षा का अपहरण हो जाता है। सोचा गया परिवर्तित होकर सामने आता है।
नेता अपनी एक जनसभा में देश की स्थिति पर:
नेता: देश की माली हालत और योजनाओं की क्रियान्विति की दशा देखकर लोग समझ जायेंगे कि देश में कितना भ्रष्टाचार है?
मतदाता: और आप जैसे लोगों की माली हालत देखकर लोग कारण भी समझ जायेंगे।
(यहां मुंह की बात छीन लेने में वाग्वैदग्ध है।)
यह तो हिन्दी लेक्सिकॉन में घणी वृद्धि हो गयी हमारे – वाक् वैदग्ध्य शब्द और उसके प्रयोग का पता चला।
अन्यथा हमारी हिन्दी शब्दावली ऐसी तंग है कि वाक् वैधव्य ज्यादा है!
विवेक भाई तो आज सर धुन रहे होंगें ! अपने तो पूरा घना साहित्य ही प्रस्तुत कर दिया -मगर बलि जाऊं इस प्रतिभा पर ! पर आप कभी कभी बिलकुल नृशंसता से भाषाई अत्याचार पर उतर आते हैं -आपके कुछ हिन्दी प्रेमी प्रशंसकों के लिए यह भी –
वाग्विदग्धता -वाग -विदग्धता -अंगरेजी के विट का समानार्थक है -उर्दू में हाजिर जवाबी ! इंटेलिजेंट ह्यूमर !या प्रत्युत्पन्मति ! बीरबल एक बड़े हाजिर जवाब ( वाग विदग्ध ) थे ! इसलिए ही अकबर और बीरबल के हाजिर जवाबी के किस्से मशहूर हैं ! आप ने नए चुनावी माहौल में इसे एक नया संदर्भ दे दिया है -तुसी ग्रेट हो हिमांशु !
बहुत ग्रेट जी. जबरदस्त लिखा है. शुभकामनाएं.
रामराम.
सब कुछ तो लिख दिया, अब ओर क्या बचा ?
धन्यवाद
वाह! परन्तु बहुत कठिन भाषा है।
घुघूती बासूती
Hi, it is nice to go through ur blog…well written..by the way which typing tool are you suing for typing in Hindi..?
i understand that, now a days typing in an Indian language is not a big task… recently, i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found.. ” quillpad”. do u use the same..?
Heard that it is much more superior than the Google’s indic transliteration…!?
expressing our views in our own mother tongue is a great feeling…and it is our duty too…so, save,protect,popularize and communicate in our own mother tongue…
try this, http://www.quillpad.in
Jai..Ho…