जो प्रश्न हैं अस्तित्वगत
तूं खींच चिन्तन बीच मत
बस जी उसे उस बीच चल
उससे स्वयं को दे बदल।
यदि प्रेम को है जानना
तो खाक उसकी छानना
उस प्रेम के भीतर उतर
निज पूर्ण कायाकल्प कर।
जो प्रश्न के आयाम हैं
सब बुद्धि के व्यायाम हैं
संतुष्ट हो या हो नहीं
अंतर न कुछ पड़ता कहीं।
पहले जहां थे हो वहीं
हो ही नहीं पाये सही
कुछ भी न परिवर्तित हुआ
क्या प्रश्न ने अन्तर छुआ?
कुछ तर्क दे सकता नहीं
वह नाव खे सकता नहीं
विधि हो न तो सब व्यर्थ है
बस आंख का ही अर्थ है।
दे संशयात्मा मन बदल
संशय न कर चल शीघ्र चल
हो दृष्टि की उपलब्धता
बस है इसी में सत्यता।
’अध्यात्म’ के एक लेख से उपजे कुछ विचार कविता बन गये ।
बढिया!
कुछ तर्क दे सकता नहीं
वह नाव खे सकता नहीं
विधि हो न तो सब व्यर्थ है
बस आंख का ही अर्थ है ।
–पूरी रचना-अपने आप में अद्भुत!! बहुत खूब!!
हो दृष्टि की उपलब्धता
बस है इसी में सत्यता ।
बहुत सुन्दर. आभार.
कमाल का प्रवाह है.. वाकई अनुपम
bikul sahii
मैथिलीशरण्गुप्त और सियारम शरण गुप्त की याद दिला रहे हैं! क्या विन्यास है!
अतिउत्तम! इतनी सशक्त कविता न जाने कितनी देर बाद पढी है! और प्रवाह ऐसा जो क्रान्तिकारी काव्य शैली में पाया जाता है। ये कविता याद रहे्गी!
सही है जी, कुछ भी बदलना हो तो अपने को ही बदलना होता है।
bahut khoob dost
रीमा जी के ब्लॉग से इस तक पहुचा -न जाने कैसे छूट रही थी –
कविता सचमुच जोरदार है ! और शैली तो बिलकुल मारक ! पर पूरी व्याख्या फुरसत में मुझे कृपा कर ई मेल से भेजना चाहे !
बस अक्सर कुछ अंतराल पर बर्बरीक का सर कटता है न !
नींद नहीं आ रही है , फ्लैश-बैक में जाकर सब देख रहा हूँ तो
आपकी कविता का लिंक मिल गया , तब नहीं देख पाया था , अब
देख रहा हूँ ..
पढ़कर अच्छा तो लग ही रहा है , पर इतनी आभ्यंतर की साधना
कहाँ सध पाती है !
मुझमें कहाँ है इतना धैर्य ! काश , होता !
@ जो प्रश्न के आयाम हैं
सब बुद्धि के व्यायाम हैं
संतुष्ट हो या हो नहीं
अंतर न कुछ पड़ता कहीं ।
——— लग रहा है कि इस निस्पृहता को धारण करने में बड़ा वक़्त लग
जाएगा ! अपने जलने में गुप्त जी की पंक्ति को भी देखता हूँ –
'' दीपक के जलने में आली ,
छिपी हुई जीवन की लाली ! ''
कोमल त्वचा पर कभी कभी दूब का तीखा तिनका भी गड़ जाता है , खून
निकलता है , दुखता है , पर यह बाद में याद तो आता ही है विशेषतः वह कोमल-कठोरता !
जिसका परिचय बच्चे का कोमल – चर्म करता है !
बर्बरीक तो हर सर-कटाई के बाद नव जन्म पाता रहता है !