
तनिक पहचानें
उस शील को
जो डरता तो है
संसार की अनगिनत
अंधेरी राहों में चलते हुए
पर अपने मन में
और दूसरों की दृष्टि में
बनना चाहता है वीर
और इसलिये
गाने लगता है।
सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध बनने तक की घटना को आधार बनाकर रचित इन नाट्य प्रविष्टियों में विशिष्ट प्रभाव एवं अद्भुत आस्वाद है।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
सौन्दर्य लहरी संस्कृत के स्तोत्र-साहित्य का गौरव-ग्रंथ व अनुपम काव्योपलब्धि है। इस ब्लॉग पर हिन्दी काव्यानुवाद सम्पूर्णतः प्रस्तुत है।
गुरुदेव टैगोर की विशिष्ट कृति गीतांजलि के गीतों का हिन्दी काव्य-भावानुवाद इस ब्लॉग पर प्रकाशित है। यह अनुवाद मूल रचना-सा आस्वाद देते हैं।
विभिन्न भाषाओं से हिन्दी में अनूदित रचनाओं को संकलित करने के साथ ही विशिष्ट संस्कृत एवं अंग्रेजी रचनाओं के हिन्दी अनुवाद भी प्रमुखतः प्रकाशित हैं।
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बहुत ही सटीक रचना . आभार.
अहा अति सुन्दर
बहुत सुन्दर भाव !
बहुत बहुत सुंदर!
bahut sunder
sunder abhivyakti.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति….आभार
अति सुंदर …
गागर में सागर।
bahut khoob. himanshu ji.
ओह, शायद शील-सज्जनता में नैसर्गिक भीरुता है? नहीं?
बहुत कम पंक्तियों में काफी कुछ कह दिया आपने.. आभार
@ ज्ञानदत्त जी, शायद।
आपकी टिप्पणी ने इस कविता को सुन्दर के अलावा भी कुछ होने का एहसास दिया । धन्यवाद ।
बहुत लाजवाब भाव व्यक्त किये हैं आपने. शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता.
धन्यवाद
काश !!!!शील डरा हुआ ही रहता
तो न चलता अंधेरी राहों में!!!!
और तब दूसरे गाते गीत
उनके मन से
और “शील” बन जाता वीर
अपनी द्रष्टि में !!!!