सावन आया । आकर जा भी रहा है । मैंने कजरी नहीं सुनी, न गायी । वह रिमझिम बारिश ही नहीं हुई जो ललचाती । उन पुराने दिनों की मोहक याद ही थी जो बारिश की जगह पूरे सावन बरसती रही, और मैं भींगता रहा उसमें । बारिश के अनोखे-अनोखे अंदाज, झूला और फिर कजरी – सब आते उतराते गये । यहाँ वही कजरी – अपने उसी मीठेपन के स्मित आग्रह से कि सावनी रंग में रंगेगी यह आपको- प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
अइलैं ना सखि श्याम सजनवाँ
बीतल जात सवनवाँ ना ॥
धाये घन कारे कजरारे
झुरकइ लगल पवनवाँ ना,
सिहरै तन गदराइल मनवाँ
बीतल जात सवनवाँ ना ॥
रहि रहि सालइ सजनि करेजवा
सूनो लगइ भवनवाँ ना,
आली, पिय बिन विकल परनवाँ
बीतल जात सवनवाँ ना ॥
पथ ताकत अँखियाँ पथरइलीं
पिय स्वर सुनत न कनवाँ ना,
हरि-हरि रटि बिलखात सुगनवाँ
बीतल जात सवनवाँ ना ॥
के गलबहियाँ दे संग बिहरी
के सखि चाभी पनवाँ ना,
’पंकिल’ खाली परल झुलनवाँ
बीतल जात सवनवाँ ना ॥
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अभी शेष हैं कुछ मधु-कजरी-गीत अगली प्रविष्टियों के लिये ….
Savan ke sath kajri ka atut rishta hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
dhnya ho
jai ho
………………..bahut umda rachna
savan aur kajri ka sambandh saakar kar diya aapne
कजरी की सुमधुर स्वर लहरी से वंचित के लिये आपकी यह पोस्ट यादो के झरोखे खोल गयी. अत्यन्त सुन्दर
वाह
बहुत ही मोहक गीत है …..सावन है और साजन की याद है बहुत ही सुन्दर है ……..
आप के कजरी ने आज सचमुच बारिश के फुहारो से भींगो दिया
बहुत सुंदर.
रामराम.
प्रशंसनीय रचना!
बहुत सुन्दर..
कजरी बहुत ही सुन्दर है…
वाह गुरु वाह…..! सावनी बयार में झुमा दिया । कजरी का स्वाद याद दिलाने के लिए धन्यवाद।
कजरी सुंदर है।
बहुत बढिया .. पर बिना बारिश के कजरी .. क्या समय आ गया !!
हमारे यहाँ तो सावन के साथ मल्हार का रिश्ता है जी !
कुछ सुनवाने का भी प्रबंध करिये तो आनन्द आ जाये.
सुन्दर और मनभावन रचना.
बधाई.
बहुत बढ़िया !!
सावन में कजरी की बात ही कुछ और होती है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }