कविता ने शुरुआत से ही खूब आकृष्ट किया । उत्सुक हृदय कविता का बहुत कुछ जानना समझना चाहता था । इसी अपरिपक्व चिन्तन ने एक दशक पहले कुछ पंक्तियाँ लिखीं । मेरी शुरुआती छन्द की रचनाओं के प्रयास दिखेंगे यहाँ । पढ़ते-लिखते जितना जाना-समझा था (वह बहुत न्यून था) सब अभिव्यक्त होना चाहता था । यहाँ वही शुरुआती कविता प्रस्तुत है –
“रचना क्या है, इसे समझने बैठ गया मतवाला मन
कैसे रच देता है कोई, रचना का उर्जस्वित तन ।
लगा सोचने क्या यह रचना, किसी हृदय की वाणी है,
अथवा प्रेम-तत्व से निकली जन-जन की कल्याणी है,
क्या रचना आक्रोश मात्र के अतल रोष का प्रतिफल है
या फिर किसी हारते मन की दृढ़ आशा का सम्बल है ।
’किसी हृदय की वाणी है’रचना, तो उसका स्वागत है
’जन-जन की कल्याणी है’ रचना, तो उसका स्वागत है
रचना को मैं रोष शब्द का विषय बनाना नहीं चाहता
’दृढ़ आशा का सम्बल है’ रचना तो उसका स्वागत है ।
’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
’मानवता पर छाया कुहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
विषय बनाना हो तो लाओ हृदय सूर्य की भाव रश्मियाँ
’दिन पर अंधेरे का पहरा’ ये रचना का विषय नहीं है ।
रचना की एक देंह रचो जब कर दो अपना भाव समर्पण
उसके हेतु समर्पित कर दो, ज्ञान और अनुभव का कण-कण
तब जो रचना देंह बनेगी, वह पवित्र सुन्दर होगी
पावनता बरसायेगी रचना प्रतिपल क्षण-क्षण, प्रतिक्षण ।
यह तो अद्भुत कविता है -बिल्कुल एक सिद्धहस्त कवि की लेखनी से स्वयंस्फूर्त उमगती निकलती और आप इसे पुरातन कहे दे रहे हैं -मगर शायद ऐसी रचनाएं कभी पुरातन नहीं होतीं उनकी चिर नवीनता ही चिर आकर्षण का बायस बनती हैं !
कविता सुंदर है। छंद दोष तो हो सकते हैं क्यों कि इसे आप ही प्रारंभिक कह रहे हैं। किसी भी रचना के मूल्यांकन की कसौटी हमारे वे शब्द हैं जिन्हें हम अक्सर स्मरण करते हैं। सत्यं शिवं सुन्दरं, इन्हें उलटे क्रम में देखें। सुंदरता रचना की ओर ग्राहक को आकर्षित करती है, उस के बिना उस का कोई मूल्य नहीं, उस में समाज और जगत के कल्याण की क्षमता होनी चाहिए और उस का आधार यथार्थ होना चाहिए। हम सभी रचनाओं को इस कसौटी पर कस सकते हैं।
बेहद ही उम्दा रचना।
छंद कभी पुराना नहीं होता। छंद के दिन फिर आएंगे …
उत्तम कविता।
बहुत बढ़िया लगी यह आपकी रचना ..
’झुकी पेशियाँ, डूबा चेहरा’ ये रचना का विषय नहीं है
बहुत सुन्दर रचना
शुरूआती रचना ऐसी है …तो ज्यादा क्या कहें इसके सिवा …पूत के पग पालने में नजर आ रहे हैं …!!
रचना निर्माण के प्रारंभ में जो संकल्प लिए आपने ….कभी उससे डिगे नहीं …हर रचना यह सिद्ध कर ही रही है …!!
इसे कहते हैं होणार बिरवान. बाकी आप हिंदी के मास्साहब हैं कुछ क्लास्सेस लेने वाली पोस्ट भी लिखिए थोडी हमारी हिंदी भी दुरुस्त होगी. एक अनुरोध मानकर अगर एक श्रृंखला लिखें काव्य, नाटको और हिंदी गद्य के बारे में तो अतिशय प्रसन्नता होगी.
जैसे ही पढ़ा की ये आपकी शुरूआती रचना है ….
मन उचक कर बैठ गया …की देखें तो ज़रा आपकी कलम पर सान कब चढाया आपने…
जैसे-जैसे पढ़ते गए …नज़र आता गया की जब ट्रेलर ऐसा था तो फिल्म तो अच्छी होगी ही…
अब समझे आपकी कोई गलती नहीं है…ये सब तो आप घुट्टी में ही पीकर आये हैं…!!!
ऐसी अद्भुत प्रस्तुति..आपसे यही अपेक्षा रही है हमेशा…बहुत जबरदस्त!!
काव्य में रचना की गहरी मीमांसा हुई है। एक गम्भीर रचना के लिए बधाई।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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रचना
को ऐसे रचना
लाजवाब
मगर
हिमांशु बाबा
अब
कुछ
अभिनव
रच ना…!
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एक तरफ भाव की बात करते हैं …….दूसरी तरफ उन्ही भावों के प्रवाह व प्रस्फुटन का निर्धारण बुद्धि के कठोर सीकचों द्वारा करवाते हैं …….