सौन्दर्य लहरी संस्कृत के स्तोत्र-साहित्य का गौरव-ग्रंथ व अनुपम काव्योपलब्धि है। आचार्य शंकर की चमत्कृत करने वाली मेधा का दूसरा आयाम है यह काव्य। निर्गुण, निराकार अद्वैत ब्रह्म की आराधना करने वाले आचार्य ने शिव और शक्ति की सगुण रागात्मक लीला का विभोर गान किया है सौन्दर्य लहरी में। उत्कंठावश इसे पढ़ना शुरु किया था, सुविधानुसार शब्दों के अर्थ लिखे, मन की प्रतीति के लिये सस्वर पढ़ा,और भाव की तुष्टि के लिये हिन्दी में इसे अपने ढंग से गढ़ा। अब यह आपके सामने प्रस्तुत है।
’तर्तुं उडुपे नापि सागरम्’ – सा प्रयास है यह। अपनी थाती को संजो रहे बालक का लड़कपन भी दिखेगा इसमें। सो इसमें न कविताई ढूँढ़ें, न विद्वता। मुझे उचकाये जाँय, उस तरफ की गली में बहुत कुछ अपना अपरिचित यूँ ही छूट गया है। उमग कर चला हूँ, जिससे परिचित होउँगा, उँगली पकड़ आपके पास ले आऊँगा। जो सहेजूँगा, यहाँ लाकर रख दूँगा। साभार।
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी भाव रूपांतर
शिवः शक्त्या युक्तो यदि भवति शक्तः प्रभवितुं । न चेदेवं देवो न खलु कुशलः स्पन्दितुमपि ॥ अतस्त्वामाराध्यां हरिहरविरंच्यादिभिरपि । प्रणन्तुं स्तोतुं वा कथमकृतपुण्यः प्रभवति ॥१॥
शिव निस्पंदित,निष्क्रिय हैं
यदि नहीं शक्ति के साथ ।
यदि शक्ति सहित हैं तो
रच देंगे अतुल, अगाध;
जब शिव स्वयं विष्णु-ब्रह्म के साथ
तुम्ही को पूजित करते
किस प्रकार तब अकृत-पुण्य जन
योग्य बनेंगे
सहज तुम्हारे आराधन के ॥१॥
तनीयांसं पांसुं तव चरण पंकेरुहभवं । विरिंचिःसन्चिन्वन् विरचयति लोकानविम् ॥ वहत्येनं शौरिः कथमपि सहस्रेण शिरसां । हरः संक्षुद्यैनं भजति भसितोद्धूलन विधिम् ॥२॥
सहेजकर तुम्हारे पद-पंकज के
किंचित रज कण
रच देते हैं अविकल सृष्टि
यह सुन्दरतम, विमुग्ध हो ब्रह्म,
कैसे-कैसे सहस्र मस्तकों पर सम्हालते
सजाते हैं विष्णु शेष-रूप हो
औ’ भस्म बनाकर समो लेते हैं
हर (शिव) स्व-तन पर ।
तव-चरणों की धूल है
अखिल ब्रह्माण्ड॥२॥
अविद्यानामंतस्तिमिर-मिहिर द्वीपनगरी। जडानां चैतन्य स्तबक मकरंद स्रुतिझरी॥ दरिद्राणां चिंतामणि गुणनिका जन्मजलधौ । निमग्नानां दंष्ट्रा मुररिपु वराहस्य भवति ॥३॥
तुम भानु-द्वीप की नगरी हो
मूढ़-हृदय के अंधकार को,
चेतना-गुच्छ हो जड़मति को
जिनसे झर-झर पराग-उल्लास झरे,
हो दीन-पतित को
चिंतामणि गर-माल
औ’ अगाध सागर मे जकड़े जन को
जन्म-मरण के
हो मुर-रिपु वराह के मुख-सी !॥३॥
अगली प्रविष्टियों में जारी….
आपको पढ के कुछ लिखा नहीं जाता ..बस दोबारा जा के पढने को जी चाहता है और मैं अक्सर वही करता हूं
Himanshu ji kai dino se kehne ki soch raha tha par aaj keh hi deta hoon ki aapke lekhan main mujhe jo sabse zayada prabhavit karta hai wo hai hindi ki pooja (main prayog ke badle pooja soch samajh ke likha hai).
Aisi bhasha main likhne ke liye aur ise banaiye rakhne ke liye aap badhai ke patr hain.
"पद-पंकज"
"अविकल सृष्टि"
aadi aadi…
kewal in shabdo ko hi padhne ke liye main baar baar aa sakta hoon, aur phir uske uppar ek poorn kavita.
Kai baar keh chuka hoon par phir kahaonga pitaji ki virast ko sambhalne ke liye dheron badhai.
Shakti ke bina Shiv apoorn hai par kya shiv jaisa samman shakti ko bhi mil paaiya hai Himanshu ji?
(Ye post se itar prashn hai par youn hi man main kaundh gaya)
Behterin 'Shiv Vandana'
अरे, भजगोविन्दम का अविकल भावानुवाद दो न मित्र!
यह वही सौन्दर्य लहरी है न जिसमें एक साथ ही ललित काव्य, आराधना और तंत्रोक्त कुंडलिनी जागरण के सूत्र पाए जाते हैं?
भई, एक तरफ बुद्ध, दूसरी तरफ शंकर और बीच में ग्रामगीत सोहर! अभिभूत कर देते हैं आप।
सौन्दर्य लहरी का सकल अंग्रेजी भाष्य मूल संस्कृत और तंत्रोक्त यंत्रों के साथ मेल कर रहा हूँ (307 पृष्ठ)। अपेक्षाए हैं, बीड़ा उठाए हैं तो झेलिए। ऐसे ही थोड़े हम घबराते हैं – बाल्मीकि रामायण वाली पोस्ट का अगला भाग नहिंए दे पाए 🙁
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उसे पढ़िएगा – 'भानु-द्वीप की नगरी' को समझने में मदद मिलेगी।
बहुत बोधगम्य -शंकर के श्लोको की प्रांजलता तो वैसे ही विश्व विश्रुत है मगर उसे और भी बोधगम्य बना देना तो सुखद आश्चर्य ही है -क्या किसी नए शंकर का प्रस्फुटन देख रहा हूँ यहाँ ?
मैं कुछ नहीं कहूँगा बस पढ़ता जाऊँगा इसे.
अरविन्द जी और गिरिजेश जी ने एक परिधि में सर्वस्व समेट दिया आपके बारे में । ज्यादा नहीं कह सकता…, बस इतना ही कहूंगा…
गजब का इन्द्रधनुषीय रंग बिखेर रहे हैं आप..!
कौशल और निखरे ।
आभार ।
शिव निस्पंदित,निष्क्रिय हैं
यदि नहीं शक्ति के साथ ।
यदि शक्ति सहित हैं तो
रच देंगे अतुल, अगाध;
पूरा ब्रह्माण्ड इसी शिवशक्ति की ही तो माया है …बहुत सुन्दर विषय चुन कर लाये हैं …!!
आपको नए साल (हिजरी 1431) की मुबारकबाद !!!
हिमांशु भाई !
' थाती को संजो रहे बालक के लड़कपन ' में बड़ी प्रौढ़ता है |
'आभार ' के पहले के आपके संकल्प ने तो भावुक बना डाला ..
भाई मैं भी बड़ी देर तक ' मन की प्रतीति के लिये सस्वर ' , 'शिखरिणी ' छंद वाले ये
श्लोक गुनगुनाता रहा ..
आपसे उम्मीद रखने के अलावा और क्या कर सकता हूँ , इस पर आपसे दूरभाष
से संपर्क के जरिये बात रखूँगा ..
भाषा पर आपकी सुन्दर पकड़ है इसलिए काव्यानुवाद बहुत सुन्दर लग रहा है |
……………. आभार ,,,
हिमांशु भाई..हम तो भूमिका स्वरुप कहे गये शब्दों में ही खो गये पहले तो।
इतनी क्षमता है नहीं कि शेष कुछ कह सकूं।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
इस महान रचना से रूबरू कराने के लिए आभार।
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जल में रह कर भी बेचारा प्यासा सा रह जाता है।
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
संस्कृत में हाथ तंग है अपना। ये अनुवाद बांचकर इस ग्रन्थ से परिचित हो रहा हूं। यह लड़कपन ही तमाम बड़े काम की आधारशिला होते हैं। बनाये रहें इसे।