If the day is done, if birds sing no more,
if the wind has flagged tired,
then draw the veil of darkness
thick upon me, even as
thou hast wrapt the earth with
the coverlet of sleep and
tenderly closed the petals of
the drooping lotus at dusk.

From the traveller, whose sack of
provisions is empty before the
voyage is endedm whose garment
is torn and dust-laden, whose
streingth is exhausted, remove
shame and poverty, and renew
his life like a flower under the
cover of thy kindly night.

(R. N. Tagore : Geetanjali)

ब हो जाये दिवसान्त शान्त हो विहग काकली छन्द प्रभो
अठखेली करते मारुत की हो जाय गिरा श्लथ मन्द प्रभो
जब अखिल धरित्री निद्रा के अम्बर में लिपटी लेटी हो
नत शिर मृदु सरसिज पंखुड़ियाँ मुद्रित दृग धुन्ध लपेटी हों ।

तब देना गहन तिमिर अंचल मेरे आनन पर खींच प्रभो
उस यात्री को निज रजनी की करुणा से देना सींच प्रभो
यात्रान्त पूर्व जिसका समस्त पाथेय बोझ हो रीत गया
यात्रा के क्रम में जीर्ण शीर्ण हो गया नाथ हो वसन नया ।

हो धूलि धूसरित पट जिसका सब शक्ति गयी हो छीज प्रभो
उस यात्री की हर लेना लज्जा दैन्य नाम की चीज प्रभो
कर देना उसका प्राणनाथ प्रिय ’पंकिल’ पुनः नवल जीवन
जैसे हो कोई खिला समन है यही प्रार्थना जीवन धन ।

(पंकिल : मेरे बाबूजी )