अमरेन्द्र भाई ने सौन्दर्य लहरी की पहली प्रविष्टि पर टिप्पणी की थी –“आपसे उम्मीद रखने के अलावा और क्या कर सकता हूँ..”। बाद में दूरभाष की बातचीत में इन छन्दों को छन्दबद्ध रूप में लिखने की इच्छा की!
हमारे लड़कपन को समझ लिया था इन्होंने, मतलब थोड़ी प्रशंसा के बाद कुछ भी कराया जा सकता है अबोध से! और हम भी बावले! छिछली नौका ले उतर ही पड़े थे- सो यह प्रयास आपके सामने है। कौन-सा छन्द है, यह तो छन्दबद्ध लोग ही बतायेंगे। प्रयास सुन्दर लगा तो अंगुलि निर्देश करियेगा, किस राह चलूँ! पहली और यह दूसरी दोनों प्रविष्टियाँ आपके सम्मुख हैं.
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी भाव रूपांतर
त्वदन्यः पाणिभ्यामभयवरदो दैवतगणः
त्वमेका नैवासि प्रकटित वराभीत्यभिनया,
भयात् त्रातुं दातुं फलमपि च वांछासमधिकं
शरण्ये लोकानां तव हि चरणावेव निपुणौ ॥4॥
प्रकट नहीं करती हो देवी, दिया हुआ वरदान अभय
अन्य देवता पर हाथों से देने का करते अभिनय ।
भय-त्राता हैं, फल देते हैं वांछाधिक, जो हुआ शरण
शरणप्रदायिनि! परम निपुण हैं वरदायी तव सुहृद चरण॥4॥
हरिस्त्वामाराध्य प्रणत जन सौभाग्यजननीम्
पुरा नारी भूत्वा पुररिपुमपि क्षोभमनयत्,
स्मरोऽपि त्वां नत्वा रति नयन लेह्येन वपुषा
मुनीनामप्यंतः प्रभवति हि मोहाय महताम् ॥5॥
तेरा ही आराधन करके, शरणागत सौभाग्य प्रदायिनी !
पुरा काल में हरि ने हर को क्षुब्ध किया धर रूप मोहिनी,
रति नयनास्वादित अनंग भी तेरे ही चरणों के बल से
मुनियों के मन को मथने में भी समर्थ है मोह-प्रबल से॥5॥
धनुः पौष्पं मौर्वी मधुकरमयी पंचविशिखाः
वसंत सामंतो मलयमरदायोधन रथः,
तथाप्येकः सर्वं हिमगिरिसुते कामपिकृपां
अपांगात्ते लब्ध्वा जगदिदमनंगो विजयते ॥6॥
यद्यपि उसका कुसुम-धनुष है, धनु-गुण भी है चंचरीक-मय
पंच सुमन-शर, मलयानिल-रथ, औ’ वसंत के साथ अभय,
मार विजित करता समष्टि को, तो वह तेरे ही सम्बल से
हिमगिरि-पुत्री! तव नेत्र-कोर से निःसृत करुणा के बल से!॥6॥
उत्क्रिस्ट,अब और क्या कहें .
त्वदन्यः पाणिभ्यामभयवरदो दैवतगणः
त्वमेका नैवासि प्रकटित वराभीत्यभिनया,
भयात् त्रातुं दातुं फलमपि च वांछासमधिकं
शरण्ये लोकानां तव हि चरणावेव निपुणौ ॥
बहुत आभार कहते हैं….
उत्कृष्ट ! ’किसी ’ भी निर्देश की बात न कहें ।
समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश को पाने के लिए विष्णु ने मोहिनी रूप का स्मरण कराती …
माता भगवती की वंदना करती ये पंक्तियाँ आचार्य शंकर के संस्कृत काव्य शिल्प को हिंदी में भी उचित स्थान दिलाने में सफल रही हैं ….
पहली कड़ी छंद मुक्त और इस कड़ी की छंदबद्ध प्रस्तुति काव्य लेखन की विधा पर आपकी लेखनी के पूर्ण नियंत्रण को दर्शाती है …संस्कृत साहित्य का हिंदी में अनुवाद और वह भी काव्य पृष्ठभूमि में…आपका यह प्रयास हिंदी ब्लॉग साहित्य में निश्चित ही मील का पत्थर साबित होगा…
समझने और लिखने में आसान होने के कारण मुझे छंदमुक्त कविता ही ज्यादा सुविधाजनक लगती हैं..मगर यह भी सच है छंदबद्ध काव्य कवि की प्रतिभा पर गर्व करने को बाध्य करता है..
बहुत शुभकामनायें और आभार ….!!
भाई, संस्कृत में अपना हाथ बहुत तंग है किन्तु इस अनुवाद को देख – पढ़ मुदित हूँ कि मित्र लोग बहुत उम्दा और यादगार काम कर रहे हैं।
और लोगों के मत का मैं भी वैसे ही इंतिजार कर रहा हूँ जैसे आप !
अपनी बात अंत में ही रखूँगा …
बेहतरीन। बधाई।
अति सुंदर
आपके लिए एक सुझाव: टिपण्णी के लिए कोई और विकल्प भी दें इस बक्से के अलावा. ये बक्सा मेरे यहाँ खुलता नहीं है कुछ सेक्युरिटी का चक्कर है. (आपके ब्लॉग और शब्दावली दोनों पर इसी कारण से मैं टिपण्णी नहीं कर पाता) बाकी बुद्ध वाली श्रृखला हो या सौन्दर्य लहरी हम तो मन्त्र मुग्ध हुए रीडर में पढ़ते ही हैं.
badhiya hai.
आपका यह प्रयास सराहनीय है। संस्कृत जानने-समझने वालों की संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है। ऐसे में आपका यह प्रयास और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारे में भी इतना सामर्थ्य नहीं कि हम आपके अनुवाद पर कमेंट कर सकें। बस मंत्रमुग्ध हो पढ़ रहे हैं। वाणी गीत की टिप्पणी बेहद सुंदर लगी। यूँ ही लिखते रहें मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
जय हो। कुसुम धनुष के जलवे हैं।
आपका यह प्रयास सराहनीय और संकलन करने योग्य है…
संस्कृत अपनी क्लिष्टता के कारण हमेशा ही आम जन-मानस से दूर रही है..इस तरह इस दुरूह भाषा का सरलीकरण ब्लॉग जगत पर आपका अहसान है..
और आपका इसे काव्य रूप देना दोगुना अहसान है…
ब्लॉग जगत में हिंदी के ऐश्वर्य में आपका योगदान अनुकरणीय है…
आपका हृदय से धन्यवाद…
बहुत ही अच्छा प्रयास है आपका |