इधर संवाद-स्वाद, फिर अवसाद के कुछ क्षणों से गुजरते हुए चारुहासिनी की मनुहार से बाबूजी के लिखे कई गीत यूँ ही गुनगुनाता रहा। अपनी सहेलियों को बाबूजी के लिखे गीतों को गा-गाकर सुनाना और फिर अपनी इस समृद्धि पर इतराना उसकी बाल सुलभ क्रिया हो गयी है इन दिनों। इसी उपक्रम में उसे सुनाये गये दो गीत यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। पहला गीत है हाय दइया करीं का उपाय, एवं दूसरा गीत है सखिया आवा उड़ि चलीं ओहि बनवाँ हो ना।
पहला गीत अकेली मेरी आवाज में है, जिसमें लक्ष्मण को शक्ति लग जाने के बाद राम की कातर स्थिति का वर्णन है, और उनका विलाप! दूसरा गीत चारुहासिनी के सहयोग से निर्मित मेरे स्वर का परिणाम है! हम दोनों ने सम्हाला है एक दूसरे को बेसुरे होने से (फिर भी कहाँ रोक पाये हैं, और उम्र भी क्या है अभी चारु की, और मैं तो हूँ ही धुरंधर)।
1. हाय दइया करीं का उपाय
हाय दइया करीं का उपाय, लखन तन राखै बदे।
घायल भइया गोद रखि बिलखत,
राघव करेजवा लगाय, लखन तन राखै बदे…….॥१॥
अबके विपिन में बिपति मोरि बाँटी,
रनबन में होखी सहाय, लखन तन राखै बदे…….॥२॥
अब के करी बड़का भइया क खोजिया,
तनि उठि के देता बताय, लखन तन राखै बदे…….॥३॥
सँग अइला तजि बाप मइया लुगइया,
का कहबै जननी से जाय, लखन तन राखै बदे…….॥४॥
जनतीं कि उड़ि जइबा बनि के चिरइया,
मर जइतीं माहुर चबाय, लखन तन राखै बदे…….॥५॥
बिरथा जनम दिहलीं तिरिया के खातिर,
भाई दुलरुवा गँवाय, लखन तन राखै बदे…….॥६॥
भरि दिन लड़ि थाकल बजरंगी,
की कतहूँ गइलैं ओंहाय, लखन तन राखै बदे…….॥७॥
की बिलमवलस रवनवाँ कै बेटा,
की गइलैं रहिया भुलाय, लखन तन राखै बदे…….॥८॥
टप-टप टपकत ’पंकिल’ अँसुवा,
झुकि गइलैं मुँहवा झुराय, लखन तन राखै बदे…….॥९॥
वाहि घरी मारुत सुत अइलैं,
गइलीं बिपतिया पराय, लखन तन राखै बदे…….॥१०॥
2. सखिया आवा उड़ि चलीं ओहि बनवाँ हो ना
सखिया आवा उड़ि चलीं ओहि बनवाँ हो ना।
जहवाँ टेरैलैं मुरली मोहनवाँ हो ना
जहवाँ हरि बोलैं सुगना-मयनवाँ हो ना-
सखिया आवा उड़ि चलीं…..॥
उगलैं शरद पुरुनियाँ कै चनवाँ हो ना
इहवाँ तन उहवाँ उड़ि गइलैं मनवाँ हो ना-
आली बिछपित भइलैं परनवाँ हो ना॥
लाख रोकै चाहे दुनियाँ जहनवाँ हो ना
तजि भागि चला धनवा-घरनवाँ हो ना-
पग कै रुनझुन बाजैला बजनवाँ हो ना॥
सासु सुतलीं अगोरले अँगनवाँ हो ना
कवनों लागी नाहीं सखिया बहनवाँ हो ना-
भावै ’पंकिल’ हरि कै चरनवाँ हो ना॥
कैसी समृद्ध परम्परा ????
its awesome !!!!
i am speechless.
अद्भुत ! अद्भुत
चारूहसिनी के स्वर तो और भी
मीठे और पक्के भी हैं
बार बार सुनी जायेगी
आभार
वाह वाह वाह….!!!
एतना एतना एतना सुन्दर…
कि अब हम का कहीं…
निशब्द बानी…..
चारू के आवाज़ में गज़ब के खनक बा…!!!!!!
बहुत सुंदर जी
हिमांशु जी
बहुत सुरीले लगे दोनों गीत और फिर चारू बिटिया का स्वर — वाह बहुत सुरीला है.
वैसे भी चित्र में भी वह बाबूजी के कान्धे से सटी बहुत खूबसूरत लग रही है. मेरा प्यार प्रेषित कीजियेगा.
चारु सुहासिनी को स्नेहाशीष -बहुत सुंदर!
वाह जी दोनों ही गीत अद्भुत हैं हिमांशु भाई ….
अजय कुमार झा
गुनगुनाने काबिल!
सुरक्षित कर लिए हैं!
हिमांशु जी,
दिन सार्थक कर दिया आपने। किसकी प्रशंसा करूँ किसके प्रति अभार व्यक्त करूँ। तीन पीढ़ियों की तिगलबन्दी ने मन मोह लिया। दो बार सुन चुका। घर भर को सुना चुका और फिर भी सुनने की इच्छा है। सर्वप्रथम आदरणीय पिता जी को नमन, आपके प्रति आभार और चारुहासिनी को आशीष। एक निवेदन है कि चारु को गायन का प्रशिक्षण अवश्य दिलवाइयेगा। उसमें नैसर्गिक प्रतिभा है। दूसरा गीत अद्भुत है।
बहुत ही सुन्दर !!!
सखियाँ आव उडी चलीं ओही बनवा हो ना तो गुनगुनाने लगा मैं भी. कमाल की पोस्ट है ये.
वाणी जी की मेल से प्राप्त टिप्पणी –
"अदा जी की तरह ही आपका पूरा परिवार ही प्रतिभावान है ….
पिताजी के गए गीत को चारू के साथ गुनगुनाते सुनना अच्छा लगा …
कंधे के पीछे से झांकती साथ चारूहासिनी बहुत प्यारी लग रही है …चारुहासिनी को बहुत स्नेह व आशीष …!!
आपको धन्यवाद दूं या ऊपर बाले को?
………
लड्डू बोलता है ….इंजीनियर के दिल से.
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_3507.html
अदभुत, चारुहासिनी को सुनकर स्तब्ध हुं. …बिटिया को बहुत आशीष,
रामराम.
गजब है भाई. दोनों को असीम आशीष और स्नेह, अब यहां से जाने का मन नही करता है…पर क्या करें? फ़िर लौटेंगे फ़ुरसत मिलते ही.
रामराम.
कुछ भी कहना शब्दों के बस में नहीं.
मधुर.
बहुत मजा आया . आपकी आवाज में दर्द है और चारुहासिनी के स्वर में गजब का मिठास. ईश्वर उसे लंबी उम्र दे….ये संस्कार और कहाँ देखने को मिले..! अद्भुत..मंत्रमुग्ध हो सुनता रहा ..अभी और भी सुनने का मन है.
,,,,आभार.
बहुत अच्छा लगा चारु बिटिया के साथ आपको सुनना। आप आगे भी इस तरह के पाडकास्ट करते रहें।
बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! बधाई!
बेटियां विलक्षण होती है
चारू को असीम आशीष, आप तो हैं ही क्रिएटिव.
इस लिये नही आई कि इंतज़ार कर रही थी कि आप गवाक्ष पर आये तब मैँ शरण लूँ… बल्कि वहाँ कि बातों को सुन कर ये बात कहने से खुद को रोक ना सकी कि ये गीत २ दिन से लगातार जाने कितनी बार सुना जा रहा है।
माँ हास्पिटलाइज़्ड है और इसमे ये सुनना
हाय दइया करीं का उपाय, लखन तन राखै बदे ।
चाहते ना चाहते आँख नम कर देता है।
घायल भइया गोद रखि बिलखत, राघव करेजवा लगाय,
लखन तन राखै बदे…….
अबके विपिन में बिपति मोरि बाँटी, रनबन में होखी सहाय,
लखन तन राखै बदे…….
अब के करी बड़का भइया क खोजिया, तनि उठि के देता बताय,
लखन तन राखै बदे…….
पंक्तियाँ जाने क्या कहती है और मुझे जाने क्या सुनाई देता है। हॉस्पिटल में पड़ी माँ की एकटक देखती आँख और उससे व्यथित हो कर मेरा आँखें घुमा लेना यही आता है आँखों के सामने
वैसे ही जैसे हॉस्पिटलाईज़्ड होने के दो दिन पहले माँ का मन भटकाने को फगुआ पूँछ रही थी और जब माँ ने
बोले भरत क्रोध बढ़ाई,
राम कहाँ माई
सुनाया तो जाने क्यों आँसू आते रहे। शायद जब मन व्यथित हो तो हर चीज़ व्यथित करती है।
बिटिया के स्वर बहुत सधे हुए हैं। कैरियर में आवश्यकता हो ना हो संगीत की शिक्षा अवश्य दिलवाइयेगा उसे। इससे सुर और निखरेंगे। सुस्मिता (चारुहासिनी:) ) को मेरा शुभाशीष…!
आज फ़िर आके सुना, बिटिया की आवाज तो विलक्षण है. आप तो इसकी सीडी बनवा कर भिजवाने की कृपा करें.
रामराम
सुन्दर प्रस्तुति ..आनंद आ गया
कंचन सिंह चौहान जी का कमेन्ट(यह शब्द 'कमेन्ट' उनके भावों की
अभिव्यक्ति के लिए बहुत छोटा है ) आपके इस पोस्ट की सबसे बड़ी उपलब्धि है ..
चारु के गले को किसी की आँखें न लगें ( नजर न लगे ) ! इसीलिए तारीफ़ की
औपचारिकता से स्वयं को भी अलग रख रहा हूँ , आपके फर्ज का स्मरण कराना
चाहता हूँ कि आप प्रयत्न-लाघव की दृष्टि से इस इस स्वर के उत्तरोत्तर
निखार के लिए उद्यमशील रहिएगा !
.
कई बार सुन रहा हूँ ,,, आपकी प्रविष्टि आयी तब लखनऊ जा रहा था , सुनने
के बाद ही घर से निकला !
आने के बाद भी सुनना जारी है , उम्मीद है कि 'अंजोर' अब और सार्थक होगा !
स्वर- सार्थकता प्रविष्टि को अनुपम बना देती है !
.
बार बार मन में गूँज रहा है अंतर्मन में ; ( जैसे बार – बार मेरी मनः-स्थिति का
छू जा रहा हो यह गाना , परवशता की निराशा कितना समर्थ भी बनाती है , 'दुःख
का धुंध' आगे का रास्ता साफ़ करता है , मानना पड़ रहा है , शायद यही है जिसे
कहते हैं कि निराशा में भी शक्ति होती है )—
'' हाय दइया करीं का उपाय, लखन तन राखै बदे ……''
'तन राखै बदे' का अपना संदर्भगत महत्व है ही बस कभी यही व्यथा
'मन राखै बदे' भी उठानी होती है व्यक्ति को !
पर लखन और राम जैसी जोड़ी कहाँ नसीब होती है सबको !
दोनों जार जार रोते हैं जब लक्ष्मण को शक्ति लगी होती है , राम की दशा को आपके
इस गाने ने कह ही दिया , और उधर लखन की भी बात ध्यातव्य है —
'' ह्रदय घाव मेरे पीर रघुवीरे ''
( तुलसीदास )
लखन कहते हैं कि ह्रदय में तो घाव मेरे है पर पीड़ा तो मेरे अग्रज राम को
हो रही है , यह राम और लखन की ही जोड़ी में संभव था !
.
आभार !!!
" worthy daughter of a worthy father "
बहुत सुन्दर स्वर है |
रामजियावन दास वाली पोस्ट बीच में छोड़कर फिर ये सुनने इस पोस्ट पर आ गया… अद्भुत है.
जितना सुन्दर नाम उतनी मधुर आवाज …….
आज सुन पाया..अद्भुत!!
बहुत सुंदर हिमांशु जी! यह प्रयास चलते रहने चाहिए. चारुहासिनी को स्नेह!
यह गीत, दूसरा वाला बहुत जल्दी पूरा हो जाता है। आज तक दो तीन बार मोबाइल पर ही सुना, सो टिप्पणी नहीं दे पाया। चारु को स्नेह-आशीष।
आपको तो क्या कहूँ प्रभु!
आप से तो अभिभूत रहता हूँ, आप की निष्ठा और सहजता से भी।
जारी रहिए, हम आँखें-कान लगाए प्रतीक्षा में रह रहे हैं…
आदरणीय हिमांशु जी, आज से लगभग एक महीने पहले कंचन जी की रुंधी-भावुक बातें सुन कर मैंने उनसे कहा था "हे भगवान्! ऎसी बात मत करो, मुझे लखन के मूर्छित होने पे राम का विलाप याद आ जाता है" … और उन्होंने मुझे तब आपके इस गीत के बारे में बताया था. आज उनके ही यादों के सहारे आपकी इस पोस्ट पे आ सकी हूँ.
इतनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को अपने आंजुर में लिए तीन पीढ़ियों को पढ़-सुन के अभीभूत हूँ.
'अतिसुन्दर' और 'उतम' शब्द छोटे हैं मन के उमड़ रहे भावों के लिए!
नमन ! शुभकामनाएं ! और चारुहासिनी को ह्रदय से आशीष! बिटिया का नाम जितना सुन्दर है उतना ही अद्भुत गायन है !
सादर शार्दुला
अभिभूत हूँ आप सबका स्नेह पाकर ! चारु सम्हाल नहीं पा रही आप सबका आशीष ! प्रवृत्त हो रही है…साधना पुकार रही है उसे…वह शायद और निखर कर आये !
आभार ।
आप त बहुते नीक गाते हैं …….
अब ई बताएं कि ई गीतिया कौने तरह से डाउनलोड होई ?
@ गंगेश राव जी,
दोनों गीतों की mp3 फाइल भेंज रहा हूँ !