माँ के काली स्वरूप की अभ्यर्थना के चार कवित्त पुनः प्रस्तुत हैं। इस भोजपुरी स्तुति काव्य में शुरुआत के आठ कवित्त काली के रौद्र रूप का साक्षात दृश्य उपस्थित करते हैं।
रौद्र-रूपा काली के सम्मुख दीन-असहाय बालक पुकार रहा है। माँ इस रूप में भी ममतामयी है..किसी भी स्वरूप में माँ है!
इस भोजपुरी स्तुति काव्य के प्रारंभिक चार कवित्त पहली प्रविष्टि में आ चुके हैं। इस प्रविष्टि मे बाबूजी की ही आवाज में इन कवित्तों का पाठ भी प्रस्तुत है। किसी अन्य की अपेक्षा बाबूजी का यह पाठ मुझे बेहतर लगा। पिछली प्रविष्टि को भी प्लेयर लगा कर अपडेट कर रहा हूँ।
स्तुति काव्य: माँ काली की रौद्र छवि (कवित्त 5-8)
घण्टा शूल मूसल हल कुलिष कृपान बान
शंख सेल चक्र अस्त्र सस्त्रन कै कमाल हौ
घुमरि घुमरि घहरि घहरि घेरि घेरि घालि घालि
घमकति घमसान घूंसा चालति भूचाल हौ
नोंचति निकारति निथारि गारि डारति माँस
आनन पसारि लास लीलति मुँह लाल हौ
पंकिल की सुधारे ही बनैगी मातु खप्परवारी
एक तू मतारी दूजै बाम्हन कै सवाल हौ॥५॥
खल खल खल हॅंसति हहाति हठियाति हूँफि
हुमकति हुंकारति मद ढारे जाति प्याली में
पियति पियावति पसावति रकत पोतति अंग
खंडति खल खंड खंड एक ही भुजाली में
उछरि उछारति बिदारति खल पाटति थल
छीलि हाड़ चाम माँस डालति जुगाली में
हर्षित मुनि साधक सिद्ध बरसत प्रसून देव
पंकिल बजावत करताल खुसिहाली में ॥६॥
बाजत खटाखट खट लटकत गल मुण्डमाल
नाटक विकराल काल खेलति खल खण्डिका
टप टप टप टपकत हुताषन रसना सो रकत
लहर लहर लहरति सिर उर्ध्वकेश झण्डिका
भैरवि भयावनि भयहारिनि भवभामिनि भली
सब सुख दात्री धात्री धर्मध्वज दण्डिका
संसय सोक समनी शंभु रमनी पुत्र पंकिल को
चरन सरन दो भवानी रणचण्डिका ॥७॥
मुख द्युति से मलिन होति अगिनित शरदिंदु ज्योति
बिलसति चपला सी अरि नीरद घटान में
अरुणिम पद पंकज पलोटत अज विष्णु इन्द्र
बार बार धारत रज शंकर जटान में
सकल सुरन के गुन नाम हूँ हेरानो तेरो
विरद निसानों यश ध्वज फहरान में
चूक हरि भर उर में भगति की अचूक हूक
फूँक मंत्र संजीवनी पंकिल के प्रान में ॥८॥
काठिन्य निवारण-
५) घुमरि घुमरि-चक्कर लगाकर; घालि घालि-चोट देकर; घमकति-पीट देना; निथारि-निस्तेज करना; गारि डारति-निचोड़ देना; लास-शव; मतारी-माँ।
६) हहाति-ठठा कर हँसना; हुमकति-कस कर मारना; पसावति-निथारना; रकति-रक्त; भुजाली-तलवार; उछरति उछारति-उछ्लना उछालना; बिदारति-खंड खंड करना, विदीर्ण करना; जुगाली-चबा-चबा कर खाना, पगुराना।
७) खल खण्डिका-शत्रुओं का नाश करने वाली; रसना सो-जीभ से; धात्री-धारण करने वाली; सोक समनी-शोक का नाश करने वाली; संभु रमनी-शंभु-प्रिया, पार्वती।
८) नीरद घटान-बादल की घटा में; पलोटत-दबाना; धारत-धारण करना; जटान-जटा; सकल सुरन-समस्त देवता; विरद निसानों-विरद का डंका, यश का डंका; भगति-भक्ति।
अद्भुद!!! माँ का विहंगम दर्शन पाठन मात्र से सामने उपस्थित हो जाता है … धन्य हैं कविवर
पंकिल की अद्भुत कालजयी रचना -बहुत आभार! उनके स्वर में सुनना एक अनिर्वचनीय अनुभव है !
श्रवण का आनन्द लिया…आभार!!
बहुत अद्भुत ….. बहुत बार कोशीश कि गाने की ,रिकार्ड भी किया ,पर इंतजार था आदरनीय बाबूजी की आवाज में सुनने का……आभार !!
संहार कर्म में समाहित आदिम और पाशव प्रवृत्तियों का उत्सव मनाना, उन्हें पूजना अगर सीखना हो तो भारत देश से बेहतर विकल्प नहीं हो सकता। सृजन कर्म को संतुलित करती संहार स्वरूपा काली का यह वर्णन ताल, ध्वनि और लय की दृष्टि से अनुपम है। आभार स्वीकारें।
इतने दिनों से ग़ायब क्यों थे?
'भुजाली' तलवार नहीं अति निकट युद्ध में प्रयुक्त कटारनुमा हथियार है। नेपाली खुखरी इसका उदाहरण है।
adbhut
गिरिजेश भईया,
भुजाली का अर्थ और स्पष्ट करने के लिए आभार ! पर संशोधित न करुँगा यहाँ…! पंक्ति देखिए न .."खंडति खल खंड खंड एक ही भुजाली में"|
गायब होने का कोई विशिष्ट कारण नहीं था! अब तो आ ही गया हूँ !
मैं क्या कहूँ ? क्या कह सकती हूँ… कुछ कहने लायक नहीं मानती खुद को … पढ़ लिया है… सुन लिया है और निःशब्द हूँ.
अद्भुत छंद. सुनाने के लिए आभार.
ध्यान दीजिए …गाते समय बाबूजी ने ..घमकति घमसान घूंसा चालति भूचाल हौ… को..
..घमकति घमसान घूंसा घेरती भूचाल हौ.. गाया है.
अद्भुत ….!!
महाकाली भय उत्पादन करती हैं, पर अद्भुत सौन्दर्य भी है उनमें! उनके विषय में पढ़ना सुनना अपने आप में विलक्षण लगता है।
मात्रेय नम:।
ध्वनि की व्यवस्था करके सम्पूर्ण प्रविष्टि का रूप दिया आपने !
मजा आ गया सुनकर !
पिछली प्रविष्टि को भी सुना !
बाकी , काव्य – सौन्दर्य पर तो मुग्ध हूँ ही ! अलग से क्या बकूं !
अर्थ – लेखन का फोंट कुछ बड़ा हो तो और ठीक रहेगा !
'एक ही भुजाली ' में खुखरी की जगह तलवार का ही तुक बैठ रहा है !
साप्ताहिक भाग-दौड़ के बाद आज कुछ अच्छी प्रविष्टियों से गुजरते हुए अच्छा लगा ! आभार !
शानदार।
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भविष्य बताने वाली घोड़ी।
खेतों में लहराएँगी ब्लॉग की फसलें।
आभार।
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क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।
आपको जन्मदिन की शुभकामनाएं
माता की रचना बहुत ही शानदार है। आपके साथ-साथ हम पर उनकी कृपा बनी रहे।
अद्भुत कवित्व, अद्भुत लालित्य!
माता की कृपा – अवश्य यही बात है। आभार इस प्रस्तुति और ख़ासकर ध्वन्यांकन और उसके साझे के लिए।
bahut sundar vimugdh hoo
abdhut..iske atirik nahi kah sakta kuch…mugdh hun
fir sununga..shayad kuchh kah sakun
bahut sunder……..sir, itne achhe shabd kaha se doondte h?
बहुत अच्छा प्रयोग ध्वन्यालंकार का युद्धभूमि की भयावहता प्रकट करने के लिये। सुन्दर कवित्त। आभार
इतने दिनों से ग़ायब क्यों थे?
अद्भुत ….!!
bahut acha laga aapke blog par aakar..
shukriya ..
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega…..
A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..
Banned Area News : 'Peepli Live' will change nothing: Anusha Rizvi
THANKS GYAN JI
बहुत ही बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
बाबूजी के स्वर में सुनना एक सुखद अनुभव रहा.