भोजपुरी गीत : प्रेम नारायण पंकिल
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ।
जेहि दिन अँगना के तुलसी सुखइहैं
सजनि कै हथवा न मथवा दबइहैं
कवनो सुहागिन कै फुटिहैं सिन्होरवा–
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ॥१॥
जहिया बिछुड़ि जइहैं मितवन के टोली
सुनबै न बचवन की तोतरि बोली
छुटि जइहैं जेहि दिनवाँ माई के कोरवा –
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ॥२॥
जहिया पियइहैं न बछरु के गइया
मरि जइहैं बेटवा जे खींचै बकइयाँ
सुगवा मिलइहैं न सुगिया से ठोरवा –
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ॥३॥
जेहि दिन उमरिया क ई रंग उतरी
सुख होइहैं सपना उलटि जइहैं पुतरी
असमय में झरि जइहैं आमें के टिकोरवा –
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ॥४॥
हरियर घसिया में लगिहैं जो आगी
पानी लेहले बदरा अकसवा में भागी
सखिया कै नथिया चोराइ लीहैं चोरवा –
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ॥५॥
कइसे ई पंकिल के कटिहैं बिपतिया
सटि आव सजनी सुनाव कुछ बतिया
लगलै बिलइहैं जवानी कै जोरवा –
टपकि जइहैं हो हमरे आँखी कै लोरवा ॥६॥
आँखी कै लोरवा– आँख के आँसू। सिन्होरवा– सिन्दूरदान(पात्र)। माई के कोरवा– माँ की गोद। बछरू-बछड़ा। बकइयाँ– घुटरुन(घुटने के बल चलना)। ठोरवा– चोंच। अकसवा-आकाश। बिलइहैं– समाप्त होना।
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गज़बै लिखे हैं बाबूजी!
धन्यवाद!
wah maza a gaya dhanyawad devendra ji.
बहुत खूब ..
भाषा का अंतर हो सकता है लेकिन भावों की कौन भाषा होती है। पंकिल जी की भावभीनी कविता दिल को छू गई! आभार!
सहमत हूँ! भोजपुरी और हिन्दी दोनों ही भाषाओं में बाबूजी की भाव-पूरित कविताएँ स्पृहणीय हैं!
क्या बात है! अपनी बोली में कविता का रस ही अलग है। सहज भाष्य में भी आप दिल को छू गए हैं।
सचमुच! गज़ब!