
विलस रहा भर व्योम
सोम
मन तड़प रहा
यह देख चांदनी
विरह अश्रु छुप जाँय, छुपाना
बादल तुम आना ।। 1 ।।
झुलस रहा तृण-पात
और कुम्हलाया-सा
मृदु गात
धरा दग्ध,
संतप्त हृदय की तृषा बुझाना
बादल तुम आना।। 2 ।।
सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध बनने तक की घटना को आधार बनाकर रचित इन नाट्य प्रविष्टियों में विशिष्ट प्रभाव एवं अद्भुत आस्वाद है।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
सौन्दर्य लहरी संस्कृत के स्तोत्र-साहित्य का गौरव-ग्रंथ व अनुपम काव्योपलब्धि है। इस ब्लॉग पर हिन्दी काव्यानुवाद सम्पूर्णतः प्रस्तुत है।
गुरुदेव टैगोर की विशिष्ट कृति गीतांजलि के गीतों का हिन्दी काव्य-भावानुवाद इस ब्लॉग पर प्रकाशित है। यह अनुवाद मूल रचना-सा आस्वाद देते हैं।
विभिन्न भाषाओं से हिन्दी में अनूदित रचनाओं को संकलित करने के साथ ही विशिष्ट संस्कृत एवं अंग्रेजी रचनाओं के हिन्दी अनुवाद भी प्रमुखतः प्रकाशित हैं।
विलस रहा भर व्योम
सोम
मन तड़प रहा
यह देख चांदनी
विरह अश्रु छुप जाँय, छुपाना
बादल तुम आना ।। 1 ।।
झुलस रहा तृण-पात
और कुम्हलाया-सा
मृदु गात
धरा दग्ध,
संतप्त हृदय की तृषा बुझाना
बादल तुम आना।। 2 ।।
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सहज सुंदर रचना हिमांशु जी।
बहुत आभार!