बचपन!
तुम औत्सुक्य की अविराम यात्रा हो,
पहचानते हो, ढूढ़ते हो रंग-बिरंगापन
क्योंकि सब कुछ नया लगता है तुम्हें।

यौवन!
तुम प्रयोग की शरण-स्थली हो,
आजमाते हो, ढूँढ़ते हो नयापन
क्योंकि सबमें नया स्वाद मिलता है तुम्हें।

वृद्ध-पन!
तुम चाह से पगे परिपक्व आश्रय हो,
तुम भी उत्कंठित होते हो, ललचाते हो
उन्हीं रंगबिरंगी चीजों में अनुभव आजमाते हो।

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Capsule Poetry,

Last Update: June 24, 2024