कैसे मुक्ति हो? बंधन और मोक्ष कहीं आकाश से नहीं टपकते। वे हमारे स्वयं के ही सृजन…
कविता की दुनिया में रचने-बसने का मन करता है। समय के तकाजे की बात चाहे जो हो,…
सोचता हूं, इतनी व्यस्तता, भाग-दौड़, आपाधापी में कितनी रातें, कितने दिन व्यतीत किये जा रहा हूं। क्या…
बहुत वर्षों पहले से एक बूढ़े पुरूष और स्त्री की आकृति के उन खिलौनों को देख रहा…
बड़ी घनी तिमिरावृत रजनी है। शिशिर की शीतलता ने इस अँधेरी रात को अतिरिक्त सौम्यता दी है।…
प्रातः काल है। पलकें पसारे परिसर का झिलमिल आकाश और उसका विस्तार देख रहा हूँ। आकाश और…