कविता की दुनिया में रचने-बसने का मन करता है। समय के तकाजे की बात चाहे जो हो, लेकिन पाता हूं कि समय का सिन्धु-तरण साहित्य के जलयान से हो जाता है। साहित्य की जड़ सामाजिक विरासत लिये होती है। शब्दों की जड़ें व्यक्ति के मन के सपनों और स्मृतियों में गहरी जमी होती हैं। इसका परिसर रोने-सुबकने से लेकर अंतःसार एवं मुखर वागविलास तक फैला है। शब्दों का आर्केस्ट्रा वेश्या-बस्ती के मोलभाव से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय कूट्नीति तक फैला है।
अच्छी कविता में हर शब्द बोलता है। हर शब्द अनिवार्य और अद्वितीय होता है। मुझे लगता है कि यही माध्यम है जिससे निहायत पैनेपन से बात कही जाती है। शब्द तरह तरह की अनुभुतियों में, भाव-भूषित अनुभूतियों में डूबा होता है। यही शब्द की जादूगरी काम करती है। दूरस्थ तारों के स्वप्न से लेकर मुंह के स्वाद तक यह हर स्थिति की याद करा देती है। हमारी देह, हमारी आत्मा, हमारे स्वप्न, हमारी मृत्यु- सब इसी झोली में समा जाते हैं।
व्यग्रता तो रहती है जरूर कि जो कहा वह शायद पहले ही कहा जा चुका है, और जो कहना चाहता था वह कभीं नहीं कह पाऊंगा। लेकिन एक न एक दिन, कहीं न कहीं सही रूप में अच्छी से अच्छी कविता जन्मेगी, इस आशा के साथ साहित्य का दामन छूटता नहीं। समय के गर्भ से आश्वस्त किया जाता हूं, फ़ारिग़ बुख़ारी की बात याद आती है-
“देख यूं वक्त की दहलीज से टकरा के न गिर
फ़ारिग़ बुख़ारी
रास्ते बन्द नहीं सोचने वालों के लिये ।”
kavita mae achha bura kyaa vakaii hota haen . mujhe to pasand aur naapasand samjh aata haen .
हिमांशु जी 90 प्रतिशत तो आप कवि बन चुके हो बाकी 10 प्रतिशत बन गए अच्छे विचार हैं अब बस कविता की दुनिया में रच बस जाओ वैसे एक बात ये कविता मैं गाने वाली बोले तो लिखने वाली अरे यार जिसको हम लिखकर गाते हैं उसकी बात कर रहा हूं
कविता करना सरल है (शायद)। पर अपने को कवि मनवा लेना जटिल च कठिन! 🙂
सही लिखा….अच्छा लिखा।
अरे मास्साब हम तो अभी यही फैसला नहीं कर पाए कि आप दार्शनिक अधिक हो या कवि ! आप दोनों ही अच्छे हो !
देख यूं वक्त की दहलीज से टकरा के न गिर
रास्ते बन्द नहीं सोचने वालों के लिये ।”
-सब कुछ तो जान गये हो, बस, उतर पड़ो मैदान में, शुभकामनाऐं.
हिमांशु जी भाई इतनी सुंदर , ओर गहरे भाव वाली कविता लिखते हो… हो फ़िर… अरे आप तो पक्के कवि हो, लेकिन यह आप ी अपनी महानता है जो अपने कवि होने पर घंण्मड नही है, ओर यही पहचान है असली कवि की.
धन्यवाद
शब्दों की महत्ता बहुत अच्छे ढंग से व्यक्त हुयी है !
भाषा का सौन्दर्य मनमोहक है !
“इसका परिसर रोने-सुबकने से लेकर अंतःसार एवं मुखर वागविलास तक फ़ैला है। शब्दों का आर्केस्ट्रा वेश्या-बस्ती के मोलभाव से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय कूट्नीति तक फ़ैला है। अच्छी कविता में हर शब्द बोलता है। “