सोचता हूं, इतनी व्यस्तता, भाग-दौड़, आपाधापी में कितनी रातें, कितने दिन व्यतीत किये जा रहा हूं। क्या है जो चैन नहीं लेने दे रहा है? कौन सी जरूरत है जो सोने नहीं देती है? कौन-सा मुहूरत है जो अभी मृगजल की तरह अनास्वाद बना है। कुछ प्राप्ति में आनन्द को खोजना चाहता हूं, लेकिन वह झट अप्राप्ति की चादर ओढ़ लेता है। कुछ होने, कुछ पाने की ललक में इसी भांति घुड़दौड़ करते हुए या जो कुछ पाये हुए से दीखते हैं, उनकी बेचैनी भी मैं देख-देख कर बेचैन-सा हुआ जा रहा हूं। क्या बात है?
सहसा कुछ अन्तर्विरोध से मुझे जूझने की भीतरी रोशनी दिखायी देती है। विचार उभरते हैं – ‘जरूरत के बिना गुजरे उसी दिन की जरूरत है’। मेरे मन में शरीर के आराम की और नाम के नाम की इच्छा बड़ी गहराई तक जाग्रत है शायद। इसी से जो मिलना चाहिये, उसका मिलन नहीं हो रहा है।
जिस दिन से ये दोष खत्म हो जायेंगे,, उसी दिन वह मिल जायेगा, जो छल रहा है। वह मिल जायेगा जिससे मैं कभी पृथक नहीं रहूंगा। इन दोषों ने बीच में कई दीवारें खड़ी कर रखीं हैं। मुझे तो कुछ होने, कुछ पाने की चाह ने कितनी स्पर्धा, द्वेष, अभिशाप, घृणा, जलन, निन्दा आदि से भर दिया है। इनकी तो गणना भी करनी मुश्किल है। तो जब तक ये लम्बी ऊंची दीवारें हैं, तब तक उस प्राप्ति का आनन्द कैसे मिले?
एक आत्म-प्रबोध बार बार मेरे अन्दर जागृत हो जाता है- “उससे क्यों नहीं कहता मैं, जिसके पाये बिना सब अनपाया रह जाना है। क्या उसकी आवाज अनसुनी कर रहा हूं जिसने कहा है –
हमारे पास कोई बद्दुआ खोजे न पाओगे
मेरे दिल में किसी के वास्ते नफ़रत रहे तब तो।
कह दूं उसी से कि इन दीवारों को ढहाने का काम भी तो आप ही को करना है। पहले परख लो मुझे कि इस हृदय में कुछ चाह है कि नहीं, और यह भी देख लो कि इस ‘कुछ’ चाह को असीम बनाने की चाह भी है या नहीं। यदि है तो इसे असीम कर दो ना, मेरे प्रिय!
बहुत बढिया !
bahut hi sarthak aur badia rachna hai bdhaai
bahut badhiya sir jee…
Sarthak aatmchintan..Sahi disha ki or
जीवन है तो व्यस्तता है, आपाधापी है, अंतर्विरोध है।
यह तो निशानी है कि जीवंत हैं हम!
इतने अधिक चिंतन की क्षमता हममें नहीं है. प्रविश्टि बेहतरीन है.
एख सुंदर चिंतन, यही तो जिन्दगी है.
धन्यवाद
मुझे तो कुछ होने, कुछ पाने की चाह ने कितनी स्पर्धा, द्वेष, अभिशाप, घृणा, जलन, निन्दा आदि से भर दिया है। इनकी तो गणना भी करनी मुश्किल है। तो जब तक ये लम्बी ऊंची दीवालें हैं, तब तक उस प्राप्ति का आनन्द कैसे मिले?
यही भाव अपने से बात चीत का सिलसिला आगे बनाते हैं .बहुत सुंदर और गहरी बाते लिखते हैं आप ..संजो के रखने लायक हैं यह ..शुक्रिया
bahut khub , gahri baat