Tag

poem

Ramyantar

मैंने जो क्षण जी लिया है ….

मैंने जो क्षण जी लिया है उसे पी लिया है , वही क्षण बार-बार पुकारते हैं मुझे और एक असह्य प्रवृत्ति जुड़ाव की महसूस करता हूँ उर-अन्तर क्षण जीता हूँ, उसे पीता हूँ तो स्पष्टतः ही उर्ध्व गति है, क्षण…

Ramyantar

जागो मेरे संकल्प मुझमें ….

जागो मेरे संकल्प मुझमें कि भोग की कँटीली झाड़ियों में उलझे, भरपेट खाकर भी प्रतिपल भूख से तड़पते स्वर्ण-पिंजर युक्त इस जीवन को मुक्त करूँ कारा-बंधों से, दग्ध करूँ प्रेम की अग्नि-शिखा में । मेरा मनोरथ सम्हालो मेरे प्रिय !…

Ramyantar

कैसे ठहरेगा प्रेम जन्म-मृत्यु को लाँघ …

तुम आते थे मेरे हृदय की तलहटी में मेरे संवेदना के रहस्य-लोक में मैं निरखता था- मेरे हृदय की श्यामल भूमि पर वन्यपुष्प की तरह खिले थे तुम । तुम आते थे अपने पूरे प्रेमपूर्ण नयन लिये निश्छल दूब का…

Ramyantar

इस तरह नष्ट होती है वासना !

मेरा एक विद्यार्थी ! या और भी कुछ । कई सीमायें अतिक्रमित हो जाती हैं । आज निश्चित अंतराल पर की जाने वाली खोजबीन से उसकी एक चिट्ठी मिली । घटना-परिघटना से बिलकुल विलग रखते हुए आपके सम्मुख लिख रहा…

Ramyantar, Religion and Spirituality

कई बार निर्निमेष अविरत देखता हूँ उसे

कई बार निर्निमेष अविरत देखता हूँ उसे यह निरखना उसकी अन्तःसमता को पहचानना है मैं महसूस करता हूँ नदी बेहिचक बिन विचारे अपना सर्वस्व उड़ेलती है फिर भी वह अहमन्य नहीं होता सिर नहीं फिरता उसका; उसकी अन्तःअग्नि, बड़वानल दिन…

Ramyantar

दिनों दिन सहेजता रहा बहुत कुछ …

(१)दिनों दिन सहेजता रहा बहुत कुछजो अपना था, अपना नहीं भी था,मुट्ठी बाँधे आश्वस्त होता रहाकि इस में सारा आसमान है;बाद में देखा,जिन्हें सहेजता रहा क्षण-क्षणउसका कुछ भी शेष नहीं,हाँ, जाने अनजाने बहुत कुछलुटा दिया था मुक्त हस्त-वह साराद्विगुणित होकर…

Ramyantar

जल ही जीवन का सम्बल है

अप् सूक्त : [जल देवता ]ऋचा –शं नो देवीर् अभिष्टय आपो भवन्तु पीतयेशं योर् अभिस्रवन्तु नः ….- –ऋग्वेद —————————————– जल ज्योतिर्मय वह आँचल हैजहाँ खिला –वह सृष्टि कमल हैजल ही जीवन का सम्बल है । ’आपोमयं’ जगत यह सारायही प्राणमय…

Ramyantar

तुम्हें कौन प्यार करता है ?

हे प्रेम-विग्रह !एक द्वन्द्व है अन्तर्मन में,दूर न करोगे ? मेरी चेतना के प्रस्थान-बिन्दु परआकर विराजो, स्नेहसिक्त !कि अनमनेपन से निकलकर मैं जान सकूँ कि तुम्हें प्यार कौन करता है ? क्या वह जो अपने प्राणों की वेदी परप्रतिष्ठित करता…

Ramyantar

तुम कौन हो ? …

तुम कौन हो ?जिसने यौवन का विराट आकाशसमेट लिया है अपनी बाहों में,जिसने अपनी चितवन की प्रेरणा सेठहरा दिया है सांसारिक गति को तुम कौन हो ?जिसने सौभाग्य की कुंकुमी सजावटकर दी है मेरे माथे पर,जिसने मंत्रमुग्ध कर दिया है…

Ramyantar

मैं कैसे प्रेमाभिव्यक्ति की राह चलूँ .

तुम आयेविगत रात्रि के स्वप्नों में श्वांसों की मर्यादा के बंधन टूट गयेअन्तर में चांदनी उतर आयीजल उठी अवगुण्ठन में दीपक की लौविरह की निःश्वांस उच्छ्वास में बदल गयीप्रेम की पलकों की कोरों से झांक उठा सावनऔर तन के इन्द्रधनुषी…