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Ramyantar

दोनों हाँथ जोड़कर…

मैं अपनी कवितायेंतुम्हें अर्पित करता हूँजानता हूँकि इनमें खुशियाँ हैंऔर प्रेरणाएँ भीजो यूँ तो सहम जाती हैंघृणा और ईर्ष्या के चक्रव्यूह सेपर, नियति इनमें भी भर देती हैनित्य का संगीत । यह कवितायें तुम्हारे लियेइसलियेकि यह कर्म और कारण की…

Ramyantar

तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है

व्यथित मत होकि तू किसी के बंधनों में है, अगर तू है हवातू सुगंधित है सुमन के सम्पुटों में बंद होकरया अगर तू द्रव्य है निर्गंध कोईसुगंधिका-सा बंद है मृग-नाभि मेंया कवित है मुक्तछंदी तू अगरमुक्त है आनन्द तेरा सरस…

Ramyantar

हार गया तन भी, डूब गया मन भी ।

समय की राह सेहटा-बढ़ा कई बारविरम गयी राह ही,मन भी दिग्भ्रांत-साअटक गया इधर-उधर । भ्रांति दूर करने कोदीप ही जलाया थाज्ञान का, विवेक का,देखा फिरखो गयीं संकीर्णतायेंव्यष्टि औ’ समष्टि की । स्व-प्राणों के मोह छोड़सूर्य ही सहेजा थाउद्भासित हो बैठी,…

Ramyantar

हे सूर्य !

हे बहु-परिचित सूर्य !नहीं पा रहा हूँ तुम्हें नये सिरे से पहचान,पहचान नहीं पा रहा ….उत्तरी हवा चल रही है । वैज्ञानिक कहता है-कृत्रिम-’हार्ट’ बना दूँगा,आँखें जाँय तो क्या, मृत कुत्ते की आँखें दूँगा ।और मस्तिष्क भी शायद,शायद वह भी…

Ramyantar

कभी तुमने अपनी गली में न झाँका

दूसरों की गली का लगाते हो फेराकभी तुमने अपनी गली में न झाँकातितलियों के पीछे बने बहरवाँसूकभी होश आया नहीं अपनी माँ का । सुबह शाम बैठे नदी के किनारेचमकते बहुत सीप कंकड़ बटोरे,सहेजा सम्हाला उन्हें झोलियों मेंगया भूल अपना…

Ramyantar

जैनू ! तुम फिर आना

जैनू ! तुम्हें देखकर ’निराला का भिक्षुक’ कभी याद नहीं आता। पेट और पीठ दोनों साफ-साफ दीखते हैं तुम्हारे और तुम्हारी रीढ़ एकदम ही नहीं झुकतीजबकि तुम तो जानते होभिखारी के पास रीढ़ नहीं हुआ करती। जैनू !समय की आँधी…

Ramyantar

टूट गयी कोर भी

अपने ऊबड़-खाबड़ दर्द की जमीन न जाने कितनी बार मैंने बनानी चाही एक चिकनी समतल सतह की भाँतिपर कभी सामर्थ्य की कमीतो कभीं परिस्थिति का रोना रोता रहा । एक दिन मौसम बदला, और सामर्थ्य ने ’हाँ’ कीतो आशाओं, संवेदनाओं…