हे प्रेम-विग्रह !
एक द्वन्द्व है अन्तर्मन में,
दूर न करोगे ?
मेरी चेतना के प्रस्थान-बिन्दु पर
आकर विराजो, स्नेहसिक्त !
कि अनमनेपन से निकलकर मैं जान सकूँ
क्या वह जो अपने प्राणों की वेदी पर
प्रतिष्ठित करता है तुम्हारी मूर्ति,
या वह जो तुम्हारी प्राप्ति के लिये
उजालों और परछाइयों की दुर्गम राह छानता है ;
क्या वह जो गुपचुप अपने में गुम होकर
स्मरण की गहराइयों में तुमसे मिलता है,
या वह जो तुम्हारे प्रेम-गीत के गान से
जगती का अन्तर्मन झकझोर देता है ।
कौन प्यार करता है तुम्हें ?
तुम्हें कौन प्यार करता है ?
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Photo Source : ditya.deviantart.com
खुबसुरत रचना ।
"मेरी चेतना के प्रस्थान-बिन्दु पर
आकर विराजो" अद्भुत शब्द सामर्थ्य है आप में. सुन्दर रचना. आभार.
shabda kawita me jaaduee tilism dikhate …….ek uchchstar ki kawita
प्रवाहमय शब्दो से लैस खूबसूरत रचना के लिये बधाई
बहुत सुन्दर रचना
Goodhaart men bhi rawani hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
या वह जो तुम्हारे प्रेम-गीत के गान से
जगती का अन्तर्मन झकझोर देता है ।
कौन प्यार करता है तुम्हें ?…
बहुत खूबसूरत रचना.
हाँ यह शाश्वत द्वैध का दैत बार बार आ घेरता है !
khoobsurat rachna…
सुन्दर प्रश्न!
कौन? ये सब एक ही तो हैं!
या वह जो जीता है तेरी सृष्टि में,
और करता है हर श्वांस का बलिदान,
तुझे पाने का अर्थ जो समझता है…
सिर्फ आह को बांट कर दुआएं बटोरने में,
बता तुझे कौन प्यार करता है?
बढ़िया रचना हिमांशु जी…..
गूढ़ प्रश्न है …ज़ाहिर है जवाब भी ऐसा ही होगा..!!
इतनी सुन्दर रचना पर देर से टिपण्णी कर पा रही हूँ..सर्वर डाउन चल रहा था..
…और मैं भी सोचने लगा कि सचमुच कौन प्यार करता है?
एक उत्कृष्ठ रचना के लिये बधाई हिमांशु जी !
himaanshu ji , bnahut dino baad blogjagat me aana hua , dekha to aapki kabvita ka rang sab par chaaya hua hai.. maine padha to jhoom gaya sir ji . waaaaaaaaaaaaah , maza aa gaya ji
badhai ho aur sirf badhai ho aur koi shabd nahi hai mere paas ji
regards
vijay
please read my new poem " झील" on http://www.poemsofvijay.blogspot.com