अप् सूक्त : [जल देवता ]
ऋचा –
शं नो देवीर् अभिष्टय आपो भवन्तु पीतये
शं योर् अभिस्रवन्तु नः ….-
जल ज्योतिर्मय वह आँचल है
जहाँ खिला –
वह सृष्टि कमल है
जल ही जीवन का सम्बल है ।
’आपोमयं’ जगत यह सारा
यही प्राणमय अन्तर्धारा
पृथिवी का
सुस्वादु सुअमृत
औषधियों में नित्य निर्झरित
अग्नि सोम मय-
रस उज्ज्वल है ।
हरीतिमा से नित्य उर्मिला
हो वसुन्धरा सुजला सुफला
देवि, दृष्टि दो –
सुषम सुमंगल
दूर करो तुम अ-सुख अमंगल
परस तुम्हारा –
गंगाजल है ।
जल के बिना सभी कुछ सूना
मोती मानुष, चन्दन, चूना
देवितमे,
मा जलधाराओ
’गगन गुहा’ से रस बरसाओ
वह रस शिवतम
उर्जस्वल है
ऋतच्छन्द का बिम्ब विमल है
जल ही जीवन का सम्बल है ।
# नया ज्ञानोदय के बिन पानी सब सून विशेषांक से साभार ।
ऋग्वेद पर आधारित इस उत्कृष्ट रचना को उद्धृत करने के लिए आभार.
बहुत धन्यवाद इस रचना के लिये.
रामराम.
अत्यंत सुन्दर
—
Sundar bhaawaanuwaad.
{ Treasurer-T & S }
kahane ko shabd kam pad gaye……..utkrisht rachana
ऋग्वेद की रचनाधर्मिता को विस्तारित करती बेजोड़ प्रस्तुति
जीवन जल के बिना संभव नहीं है, यह सत्य है।
बिन पानी सब सून ..!!
himaanshu ji aapne bahut hi saarthak lekh likha hai , jal hi jeevan hai , leki n abhi hum ko ek jaagurtata ki jarurat hai jis se ki hum jal bacha sake….
badhai is rachna ke liye
namaskar.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
सुप्रसार , आभार।
कोटा निवासी बशीर अहमद मयूख साहब ने भी वैदिक ऋचाओं के सुंदर अनुवाद किये हैं…
बहुत बढ़िया अंक है नया ज्ञानोदय का। अब आपने याद दिला दिया – ढूंढ़ना होगा।
अच्छी कविता,आभार..।