फ़ैली हुई विश्वंजली में, प्रेम की बस भीख दे दो विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की…
आज की सुबह नए वर्ष के आने के ठीक पहले की सुबह है। मैं सोच रहा हूँ…
बज गयी दुन्दुभि, परिवर्तन आने वाला है। है निस्सीम अगाध अकल्पित, समय शून्य का यह विस्तार प्रिय…
कल के अखबार पढ़े, आज के भी। पंक्तियाँ जो मन में कौंधती रहीं- “अब जंग टालने की…
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ। बहुत भटकता रहा खोजताअपने हृदय चिरंतन तुमकोजो हर…
हिन्दी ब्लॉग लेखन को साहित्य की स्वीकृत सीमाओं में बांधने की अनेक चेष्टाएँ हो रही हैं। अबूझे-से…