फ़ैली हुई विश्वंजली में, प्रेम की बस भीख दे दो
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।
चिर बंधनों को छोड़ कर क्यों जा रही है अंशु अब
अपनी विकट विरहाग्नि क्यों कहने लगा है हिमांशु अब
सुन दारुण दारुण व्यथा सब नव वर्ष अपनी चीख दे दो।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।
ज्यों डूब जाता है सुधाकर, विश्व को आलोक दे
फ़िर उदित होता नवल वह सब दुखों को शोक दे
बढ़ते रहें आगे सदा, नव वर्ष अपनी लीक दे दो।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।
वाह हिमांशु ‘मोह गयी मन को यह अभिव्यक्ति …’
ज्यों डूब जाता है सुधाकर , विश्व को आलोक दे
फ़िर उदित होता नवल वह सब दुखों को शोक दे
बढ़ते रहें आगे सदा, नव वर्ष अपनी लीक दे दो ।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।
हिमांशु जी,
हमेशा की तरह एक उत्कृष्ट रचना. आपको, परिजनों और मित्रों को नववर्ष की मंगल-कामनाएं!
ज्यों डूब जाता है सुधाकर , विश्व को आलोक दे
फ़िर उदित होता नवल वह सब दुखों को शोक दे
बढ़ते रहें आगे सदा, नव वर्ष अपनी लीक दे दो ।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।
बहुत सुंदर, हमेशा की तरह से. भाई आप के बांल्ग पर आ कर मुझे अपनी भुली हिन्दी सवांरने का मोका मिल जाता है, साफ़ सुथरी ओर बिलकुल सही हिन्दी.कभी कभी समझ से परे होते है कई शब्द
धन्यवाद
नव वर्ष की आप और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं !!!नया साल आप सब के जीवन मै खुब खुशियां ले कर आये,ओर पुरे विश्चव मै शातिं ले कर आये.
धन्यवाद