क्या कहूँ की कविता ने लुभाया बहुत और लिखने की ताब भी पैदा की, पर लिखने की रौ में मैं यह भूल गया, कविता अगर आज की साज़िश का हिस्सा नहीं बनती तो वो कविता नहीं बनती। साहित्य के नये मौसम का हाल मुझ नये मुसाफिर को समझना था, पर मैं यहाँ भी असफल था। हार कर छूट गयी कविता और लिखने का हौसला भी। ज़रूरी भी था क्योंकि शुरुआत कच्ची थी और उमर भी कच्ची। दुर्घटना हो गयी कविता के साथ।
कभी-कभी कहीं दूर से आती हुई एक मद्धिम सी रोशनी मन में आस जगा जाती है। बस पढ़ते-पढ़ते एक ख़ालीपन के बीच ‘हिन्दुस्तान’ में रवीश कुमार की ब्लॉग-वार्ता से भेंट हो गयी। अपने एक कंप्यूटर-फ्रेंड्ली मित्र से ब्लॉग के बाए में कुछ जाना और सम्मोहित सा रवीश जी के बारे में सोचने लगा। मुझे लिखने की प्यास फिर से महसूस होने लगी।
अभी तक मैने अपने रिज़ल्ट देख कर इंटरनेट का मतलब समझा था (मेरे कस्बे के अधिकांश जन इंटरनेट को रिजल्ट देखने का साधन ही तो समझते हैं)- खालिस आम भारतीय की तरह। पर एक और गवाक्ष खुल रहा था मेरे सामने। एक पुराना कंप्यूटर और बीएसएनएल के ब्रॉडबॅंड को साथ ले मैने ‘नई सड़क’ पर चलने का निश्चय किया। कंप्यूटर अभी सीख रहा हूँ। अपनी इस पहली ना-मालूम लिखावट के लिए रविश जी की ब्लॉग वार्ता का बड़ा कर्ज़दार हूँ मैं।
अब ढंग से लिखने की कोशिश करूँगा, कि ‘नई सड़क’ का एक अच्छा मुसाफिर सिद्ध हो सकूँ। अब बाद में ।
नयी सड़क पर पहले कदम को सलाम ..