I Know Not How Thy Singest, My Master! is a poetic expression by Rabindranath Tagore, a renowned Indian literary figure and Nobel laureate in Literature. This piece reflects Tagore’s deep spiritual connection and reverence for the divine or the higher power he refers to as “my master.”
In the song the poet is deeply moved and captivated by the transcendent beauty and spiritual power of the music, which illuminates the world, transcends barriers, and flows with a holy, unstoppable force. Despite the poet’s intense longing to participate in and replicate the master’s song, he find themselves unable to do so, feeling overwhelmed and unable to transform his emotions into song.
This inability leaves him feeling both captivated and frustrated, recognizing his own limitations in the face of such sublime artistry. Ultimately, the song expresses the poet’s deep reverence for the master’s music and their yearning to be a part of it, even as he is caught in the mesmerizing and inescapable web of its beauty.
इस गीत में कवि उस आत्मिक सुंदरता और आध्यात्मिक शक्ति से गहरे प्रभावित और मंत्रमुग्ध है, जो संगीत के माध्यम से प्रकट होती है और दुनिया को प्रकाशमान करती है। यह सभी बाधाओं को पार कर जाती है और एक पवित्र, अविरल धारा की तरह बहती है। कवि चाहता है कि वह स्वयं भी नियंता (स्वामी) के गीत में शामिल हो जाए और उसके साथ लय हो जाए। उसके मन में यह लालसा बड़ी तीव्र है, लेकिन वह इसे करने में असमर्थ पाता है, अपनी भावनाओं को गीत में बदलने में असमर्थ होता है।
यह असमर्थता उसे मंत्रमुग्ध भी करती है और हताश भी महसूस कराती है, क्योंकि वह अपनी सीमाओं को स्वीकृत कर चुका है जो इस अद्वितीय कला के सामने प्रकट होती है। वस्तुतः गीतांजलि का यह गीत कवि की गहरी श्रद्धा को अपने स्वामी के संगीत के प्रति और उनकी उस संगीत का हिस्सा बनने की तीव्र इच्छा को व्यक्त करता है, भले ही वह इस अद्भुत सुंदरता की मंत्रमुग्धता के जादू और अवरोध में फँसा हुआ है।
Hindi Translation of the song ‘I Know not how thy singest, my master!’
Original Text
Translation in Hindi
I know not how thy singest, my master!
I ever listen in silent amazement.
The light of thy music illumines the world.
The life breath of thy music runs from sky to sky.
The holy stream of thy music breaks
through all stony obstacles and rushen on.
My heart longs to join in thy song,
but vainly struggles for a voice.
I would speak, but speech breaks not into song,
and I cry out baffled .
Ah, thou hast made my heart captive in the
endless meshes of thy music,
my master !
ज्ञात नहीं कैसे गाते हो तुम प्राणों के प्राण रे।
मैं विस्मय विमुग्ध सुनता हूँ मौन तुम्हारा गान रे॥
कर देता जगती को जगमग तेरा गीत प्रकाश
स्वरित श्वांस संचरणाच्छादित हो जाता आकाश
मथ देती तेरी स्वर-सरिता अवरोधक पाषाण रे-
ज्ञात नहीं कैसे गाते हो तुम प्राणों के प्राण रे॥
यह उर की अभिलाषा तेरे साथ साथ ही मीत
स्वर में स्वर संयुत कर गाऊं प्रियतम तेरा गीत
किंतु हाय अवरुद्ध कंठ निष्फल संगीत विधान रे-
ज्ञात नहीं कैसे गाते हो तुम प्राणों के प्राण रे॥
वाणी होती स्खलित मिला सकता कैसे स्वरताल
तव अक्षय संगीत जाल में फंसा ह्रदय तत्काल
मंत्र मुग्ध हूँ प्रभु रस ‘पंकिल’ सुन कर तेरा तान रे –
ज्ञात नहीं कैसे गाते हो तुम प्राणों के प्राण रे॥
सुन्दर भावानुवाद है ..
वही लिरिक बरक़रार है ..