My Song Has Put Off Her Adornments is another exquisite poem by Rabindranath Tagore from his collection “Gitanjali” (Song Offerings), which won him the Nobel Prize in Literature in 1913. This poem delves into the themes of simplicity, purity, and the intimate connection between the human soul and the divine.

Original Text of the Song

My song has put off her adornments.
She has no pride of dress and decoration.
Ornaments would mar our union;
They would come between thee and me :
their jingling would drown thy whispers.

My poets’ vanity dies in shame
before thy sight. O master poet,
I have sat down at thy feet. Only
let me make my life simple and straight,
like a flute of reed for
thee to fill with music.


यह गीत रवींद्रनाथ टैगोर का एक और उत्कृष्ट गीत है, जो उनके संग्रह “गीतांजलि” में संग्रहित है। यह गीत गुरुदेव टैगोर के अन्य गीतों की तरह, सरलता, शुद्धता और मानवीय आत्मा और दिव्य के बीच के अंतरंग संबंध के विषयों पर चर्चा करता है। इस गीत का हिन्दी काव्यानुवाद श्री प्रेम नारायण पंकिल द्वारा किया गया है।

Hindi Translation by Prem Narayan Pankil

मेरे गीत अलंकृति हीन ।
ये आवरण आभरण गरिमा रहित अकिंचन अतिशय दीं॥

आभूषण तो मिलन बीच बन जायेंगे रोधक प्राचीर
एकाकार प्राप्त कर सकती फिर हम दोनों की न शरीर
इनके खनक बीच होगा प्रिय तेरा मधु स्वर मंद विलीन –
मेरे गीत अलंकृति हीन॥

तुम्हे देख लज्जित हो मरता मेरा मिथ्या काव्य विलास
बैठ गया प्राणेश कवीश्वर तेरे चरण कमल के पास
लो मेरे जीवन से प्रियतम सब असहजता सब छल हीन-
मेरे गीत अलंकृति हीन॥

मुझको सहज सरल कर लेने दो अपना यह जीवन नाथ
तेरे हित वंशी रव-सम हों मुखरित ‘पंकिल’प्राण सनाथ
प्रियतम तेरे गीत संपुटित हों हम बस तेरे आधीन –
मेरे गीत अलंकृति हीन॥