एक बाग़ है
अनुभव का
उसमें खिले हैं कुछ फूल
ये फूल बरसों का निदाघ
झेल कर बड़े हुए
ये फूल समय के शेष नाम हैं।

अनुभव का अपना
एक पूरा आकाश है
उस आकाश में उगा है एक चाँद
चाँद की एक जिद है अनवरत
वह रोज-ब-रोज मुझे समझाना चाहता है
मैं उस चाँद के डूब जाने की प्रतीक्षा करता हूँ।

अनुभव एक कौतुक है
अपने होने का
उसमें होती है एक छद्म-सी हंसी
और सच में उस हंसी का एक लम्बा बियाबान है
मैं भटक गया हूँ उसमें।

न जाने क्यों ऐसा लगता है बार-बार
कि अनुभव अपने आप में एक तिरछापन है
जिसमें गुंथे हुए हैं हम सब
कहीं न कहीं
पर फिर भी उठती है टीस हृदय में
कि अनुभवहीन हैं हम।

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Poetry,

Last Update: July 4, 2024