क्यों?
खो गए हो विकल्प में,
चर्चित स्वल्प में
विस्मृत सुमधुर अतीत
क्यों लेकर चलते हो
बेगाना गीत
स्वर्ग की ईच्छा क्यों
छोड़ दी तुमने
आख़िर अनसुलझी, अस्तित्वविहीन
अनगिनत कामनाओं की डोर
क्यों जोड़ दी तुमने
आख़िर क्यों बहक जाते हो
तुम इस चक्रव्यूह में,
क्या नहीं कोई तुम्हारा
साथ चलने वाला सहारा
जो करता हो मार्ग प्रशस्ति
और क्या नहीं रहा
तुम्हारा साहस
जिसकी एक आहट
दिखाती चैतन्य
हो जातीं कठिनाइयाँ अनुमन्य
और उगता तुम्हारा सूर्य।
भला क्यों कोई साथी
कोई सहारा
कोई साहस न रहा
भिगोने को ह्रदय उद्यत
क्यों कोई पावस न रहा?
मैं पूछता हूँ प्रश्न –
आख़िर क्यों ?
और तुम कहते हो उत्तर –
हाँ, क्यों?
Greetings to You,
Very Nice and Peaceful Poem as you look like in your photograph.
Congratulations and Regards
Dr. Chandrajiit Singh
chandar30@gmail.com
chandar30.blogspot.com
kvkrewa.blogspot.com
indianfoodconcept.blogspot.com
बहुत सार्थक रचना बधाई आपका चिठ्ठा जगत में स्वागत है निरंतरता की चाहत है
बधाई स्वीकारें मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
आख़िर क्यों बहक जाते हो
तुम इस चक्रव्यूह में,
क्या नहीं कोई तुम्हारा
साथ कालने वाला सहारा
जो करता हो मार्ग प्रशस्ति
और क्या नहीं रहा
तुम्हारा साहस
जिसकी एक आहट
दिखाती चैतन्य
हो जातीं कठिनाइयाँ अनुमन्य
और उगता तुम्हारा सूर्य।
अच्छा लिखा है आपने. चिटठा जगत मैं आपका स्वागत है.
andar ki susupt chetna ko jagane ka achha sarthak prayaas………
हिमांशु जी,
भावाभिव्यक्ति की अच्छी अच्छी कोशिश। शुभकामना।
सचमुच हम सब समस्याओं से जूझने के बजाय विकल्प की तलाश में ही तो लगे रहते हैं।
।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
http://www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत बढ़िया सर.
अच्छा अंदाज़ है !
PS please remove word verification
अच्छा .. तो करुनावतार बुद्ध की भूमिका इस तरह बनी ..
सुन्दर रचना ..