अमेरिकी दार्शनिक कवि इमरसन (Ralph Waldo Emerson) का एक प्रसंग पढ़ रहा था । समय की अर्थवत्ता को ध्वनित करता यह प्रसंग बहुत दूर तक प्रासंगिक लगा। कविता का संस्कार है। अपने छोटे से भतीजे को ग्राह्य बनाने हेतु उस प्रसंग का काव्य रूपांतर कर दिया। वही प्रसंग काव्य रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ –

Emerson

अमेरिका का श्रेष्ठ विचारक रहा इमरसन
उससे पूछा गया कि कितना बीता जीवन
बोला, “बीते वर्ष तीन सौ साठ हमारे “
पृच्छक ने हंस कहा “साठ के लगते प्यारे”
कहा इमरसन ने-“सुहृद तुम तनिक विचारों
हमने कितना कार्य किया है उसे निहारो
कर्म अनेकों स्वल्प समय में लिपट गए हैं
वर्ष तीन सौ साठ, साठ में सिमट गए हैं।

समय व्यर्थ यदि खोओगे तो लुट जाओगे
यदि पल-पल की कीमत कर के जुट जाओगे
तो सच तेरे चरण सफलताएँ चूमेंगी
उपलब्धियां तुम्हारे इर्द गिर्द घूमेंगी
‘समय नहीं है’ कायर ऐसा रोना रोते
कर्मठ तो नित क्रियाशीलता में ही होते
मत सोचो कब क्या करना है,काम न टालो
ज्यों ही मौका मिले काम पूर कर डालो।

घंटे जो चौबीस उन्हें पच्चीस बनाओ
पल-पल गिनो न समय,समय धन श्रेष्ठ बचाओ
समय पखेरू है भागते समय को पकडो
मत जड़ता-आलस्य अंक में अपने जकडो
वरीयत के क्रम से अपना कर्म सँवारो
सब में मत उलझो यूँ तो हैं काम हजारों
बार-बार मत गिनो समय विश्वास बढाओ
सुनो धैर्य से कभी तुलना में मत जाओ।

निश्चय कर लो क्या करना क्या कर पाओगे
ऐसा कर सफलता-शैल पर चढ़ जाओगे।

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