क्या करिश्मा है इस बुझे दिल को, कितना खुशदिल बना दिया तुमने
अब तो मुश्किल को भी मुश्किल कहना, बहुत मुश्किल बना दिया तुमने।
पाँव इस दर पै आ ठिठक जाते, हाँथ उठते भी तो सलीके से
आँख नम, क्या कहूं कि किन-किन को कितना बोझिल बना दिया तुमने।
रात दिन था तलाशता फिरता, नाव को कौन ठांव बाँधूं मैं
अब तो दरिया की मौज ही सच में, मेरी मंजिल बना दिया तुमने ।
इस हुनर में भी इतने माहिर हो इसका था तनिक भी न अंदाजा
मुंह की कालिख को पोंछ उंगली से गाल का तिल बना दिया तुमने ।
पाँव हारे थके मुसाफिर के धो के, जब दर्द पी गया उनका
मन को बुलबुल,जुबान को कोयल,दिल को हारिल बना दिया तुमने।
बात इतनी नहीं थी हल्की जो, बात ही बात में निबट जाती
लाख करता रहा गुणा-भागा, शून्य हासिल बना दिया तुमने ।
आज तक राज यह न खुल पाया, तुम हमारे कि हम तुम्हारे हैं
कुछ भी रहने दिया नहीं निर्मल, सब को पंकिल बना दिया तुमने।
क्या बड़ाई करूँ , आप गजल भी अद्भुत लिखेंगे ..
इंतिजार है उस दिन का !