प्रेम पत्रों का प्रेम पूर्ण काव्यानुवाद: दो
प्रिय! तुमने लिखा आँख भर आयी,
मैंने अपने दिन खोये और रात गंवाई ।
मेरी भाव भूमि के बदले
सच, तुमने ही पहले पहले संचित भाव कोष दे दिया,
‘विंहसेगा मानस उर अन्तर’
प्रियतम ! तुमने ऐसा लिखकर मेरे मन को संतोष दे दिया;
मैं रोई मन का यह संशय
व्यर्थ विकल हो भ्रम है अतिशय, वह रुदन नहीं थी प्रीत तुम्हारी,
क्या वह कहा गए प्रिय भूल
आँसू में खिलते है फूल, यही प्रीति की रीति हमारी ;
जब कोई प्रेम सघन हो जाए
पर-निज प्रेम बीच खो जाए, सुधि में रहना कब आता है,
हो जाता जब विवश शब्द
और प्रेम छलकता है अनहद, वह आँसू बनकर बह जाता है;
अपने इस संबल से तुमने
प्राण ! विगत से मुक्ति दिलाई,
प्रिय !तुमने लिखा आँख भर आयी।
प्रिय लिखे तो आंख भर आती है। न लिखे तो भी भर आती है। स्मृति भर काफी है प्रिय की; आंख भर आने को।
बहुत ही सुंदर भाव है.
धन्यवाद
बड़ा 'लीरिक' है यहाँ दोस्त !
उस प्रेमी को प्रणाम ..